Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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72...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में एवं संघोन्नति की मंगलमय भावना से की जाती है, किन्तु कुछ साधक, जो अस्थिर एवं चंचल चित्त वाले होते हैं उन्हें आवश्यक क्रियाएँ करना कष्टप्रद महसूस होता है। उस समय स्थविर द्वारा उसे विविध उक्तियां देकर समझाया
और स्थिर किया जाता है। इस तरह स्थविर पद के माध्यम से संघ का हित एवं चारित्र धर्म की अभिवृद्धि होती है। यही इस पद की उपादेयता भी सिद्ध होती है। सन्दर्भ-सूची 1. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 499 2. पाइयसद्दमहण्णवो, पृ. 448 3. संस्कृत-हिन्दी कोश, पृ. 1359 . 4. स्थविरो- यः सीदन्तं ज्ञानादौ स्थिरीकरोति।
ओघनियुक्तिटीका, पृ. 61 5. थिरकरणा पुण थेरो, पवित्ति वावारिएसु अत्थेसु । जो तत्थ सीयई जई, सतवलो तं थिरं कुणइ ।
आवश्यकनियुक्ति अवचूर्णि, उद्धृत- जैन आचार :
सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 498 6. धर्मेऽस्थिरान स्थिरीकरोतीति स्थविरः।
उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, पृ. 550 7. थेरो एतेसु चेव, नाणादिसु सीतंतं थिरी करोति, पडिचोदेति, उज्जमंतं अणुवूहति।
कल्पसूत्रटीका, टिप्पण, पृ. 108 8. संविग्गो मद्दवितो, पियधम्मो नाण-दसण-चरित्ते ।
जे अढे परिहायति, ते सारेतो हवइ थेरो॥ थिरकरणा पुण थेरो, पवत्ति वावारितेसु अत्थेसु । जो जत्थ सीदति जती, संतबलो तं पचोदेति ॥
व्यवहारभाष्य, 960, 961 9. प्रवर्तितव्यापारान संयमयोगेषु सीदत: साधून ज्ञानादिषु । ऐहिकामुष्मिकापायदर्शनतः स्थिरीकरोतीति स्थविरः ।
प्रवचनसारोद्धार टीका, द्वार-2, पृ. 63 10. व्यवहारभाष्य, गा. 4597