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78...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में (सागरवरगम्भीरा तक) कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहें।
अनुज्ञापन- उसके पश्चात पदग्राही शिष्य पहला खमासमण देकर कहें - "इच्छकारि भगवन्! तुम्हे अम्हं दिगाइ अणुजाणह" - हे भगवन्! आपकी इच्छा हो तो मुझे दिशादि (विचरण आदि) की अनुज्ञा दें। तब गुरु बोले - "अहमेअस्स साहुस्स खमासमणाणं हत्थेणं दिगाइ अणुजाणामि" पूर्व पुरुषों की स्वीकृति से मैं इस मुनि के लिए दिशादि की अनुज्ञा देता हूँ।
शिष्य दूसरा खमासमण देकर कहें - "संदिसह किं भणामि" आपने मुझे दिशादि की अनुमति प्रदान की, आज्ञा दीजिए, इस विषय में कैसे कहूँ? गुरु बोले 'वंदित्ता पवेयह' - वन्दन कर इस विषय में प्रवेदन करो।
शिष्य तीसरा खमासमण देकर कहें - "इच्छकारि भगवन्! तुम्हे अम्हं दिगाइ अणुन्नाओ, इच्छामो अणुसहि" आप द्वारा मुझे दिशादि की अनुमति दे दी गयी है, अब मैं आपसे हित शिक्षा की इच्छा करता हूँ। गुरु प्रत्युत्तर में कहे - "सम्म अवधारय, अन्नेसिपि पवेयह" इस गणावच्छेदकपद को सम्यक रीति से धारण करो और अन्य मुनियों में भी इस पद का प्रवर्तन करो। ___फिर शिष्य चौथा खमासमण देकर कहें - "तुम्हाणं पवेइओ साहूणं पवेएमि" आपको इस पद ग्रहण के सम्बन्ध में सूचित किया, अब मुनि संघ (चतुर्विध संघ) में इस पद स्वीकार की सूचना देता हूँ।
पुन: शिष्य पांचवाँ खमासमण देकर एक-एक नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए गुरु और समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें।
फिर शिष्य छठवाँ खमासमण देकर कहें - "तुम्हाणं पवेइओ, साहूणं पवेइओ, संदिसह काउस्सग्गं करेमि" मैंने आपको इस पद की सम्यक जानकारी दे दी है, मुनि संघ में भी इसकी सूचना दे चुका हूँ, अब आपकी अनुमति पूर्वक कायोत्सर्ग करता हूँ। ___ तदनन्तर सातवीं बार खमासमणसूत्र द्वारा वन्दन करके दिगाइ अणुजाणावणियं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें।
मन्त्र दान- फिर शुभ लग्न का समय आ जाने पर गुरु शिष्य के दाहिने कर्ण में निम्न मन्त्र को तीन बार सुनाएं -