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106...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
• बृहत्-हिन्दी कोश में उपाध्याय को 1. वेद-वेदांग पढ़ाने वाला और 2. अध्यापक कहा गया है।
• प्राकृत-हिन्दी कोश के अनुसार उपाध्याय के तीन अर्थ हैं - 1. पढ़ाने वाला 2. सूत्राध्यापक और 3. जैन मुनि की एक पदवी। प्रस्तुत अध्याय में उक्त तीनों ही अर्थ मान्य हैं।
• उवज्झाय शब्द की नियुक्ति करते हुए लिखा गया है कि 'उ' का अर्थउपयोगपूर्वक, 'वज्झाय' का अर्थ-ध्यान युक्त। जो श्रुतसागर के अवगाहन में सदा उपयोगपूर्वक ध्यान करते हैं, वे उपाध्याय हैं।
संक्षेपत: जिनके समीप शास्त्र का ज्ञान अर्जित किया जाए अथवा जो आगम-ग्रन्थों का अध्ययन करवाते हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं। उपाध्याय की मौलिक परिभाषाएँ
• आवश्यकटीका में उपाध्याय का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ बताते हुए कहा गया है कि "उपेत्य अधीयतेऽस्मात् साधवः सूत्रमित्युपाध्यायः" - जिनके पास मुनिगण सूत्र का अध्ययन करते हैं, वे उपाध्याय हैं।
• आचारांगटीका में उपाध्याय को अध्यापक कहा गया है।
• भगवतीआराधना में 'उपाध्याय' का व्युत्पत्ति मूलक निम्न अर्थ किया गया है- "रत्नत्रयेषूद्यता जिनागमार्थं सम्यगुपदिशंति ये ते उपाध्यायाः" अर्थात जो ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना में स्वयं निपुण होकर दूसरों को आगमों के अर्थ का सम्यक् उपदेश देते हैं, वे उपाध्याय हैं।'
• आवश्यकनियुक्तिकार के अनुसार जो स्वयं अर्हत् प्रणीत द्वादशांगी (आचारांग आदि 11 अंग सत्र) का स्वाध्याय करते हैं और शिष्यों को उनका उपदेश (वाचना) देते हैं, वे उपाध्याय हैं।
• आचार्य भद्रबाहु ने 'उवज्झाय' शब्द का निरूक्तार्थ इस प्रकार किया हैउवज्झाओ (उपाध्याय) में 'उ' का अर्थ उपयोग, 'व' का अर्थ पाप वर्जन, 'झा' का अर्थ ध्यान और 'ओ' का अर्थ कर्म का अपनयन है। जो सूत्रार्थ में उपयोगवान हैं, पापभीरू हैं, श्रृतसागर के ध्यान में लीन हैं तथा पाप कर्म का अपनयन करने में संलग्न हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं अथवा जो सूत्र वाचना देने में अपने सूक्ष्म चिन्तन का उपयोग करते हैं, वे उपाध्याय हैं।
• विशेषावश्यकभाष्य के उल्लेखानुसार जिनके समीप शिष्य आकर पढ़ते हैं अथवा जो समागत शिष्यों को पढ़ाते हैं, वे उपाध्याय हैं अथवा जो स्व-पर