Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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अध्याय-7
उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप
जैन पद व्यवस्था में उपाध्याय पद विशिष्ट स्थान रखता है। परवर्ती पदव्यवस्था के क्रम में उपाध्याय का दूसरा स्थान माना गया है, किन्तु योग्यता के आधार पर इन्हें चौथा स्थान प्राप्त है। सूत्रार्थ के विशिष्ट ज्ञाता एवं सूत्र-वाचना द्वारा शिष्यों के निष्पादन में कुशल मुनि उपाध्याय कहलाते हैं। सामान्यतः उपाध्याय सूत्रप्रदाता एवं आचार्य अर्थदाता कहे जाते हैं।
उपाध्याय को ज्ञान के अधिदेवता, संघ रूपी नन्दनवन के कुशल माली, ज्ञान रूपी वृक्ष का अभिसिंचन करने वाले अधिनायक एवं आगम पाठों को सुरक्षित रखने वाले सुयोग्य शिल्पी की उपमा दी गई है। उपाध्याय प्रज्वलित दीपक के समान होते हैं, जो दूसरे अप्रकाशित दीपकों को अपनी ज्ञान ज्योति के स्पर्श से प्रकाशमान बनाते हैं। जिस प्रकार अन्धे को चक्षुदान देना उत्तम कार्य है उसी प्रकार अज्ञानी को ज्ञानदान करना श्रेष्ठ पुण्यमय कर्म है, यह पुण्य कार्य उपाध्याय करते हैं। उपाध्याय शब्द के विभिन्न अर्थ
उपाध्याय का मूल प्राकृत रूप 'उवज्झाय' है। उवज्झाय शब्द का संस्कृत रूप उपाध्याय होता है।
.उपाध्याय शब्द 'उप' + 'अधि' उपसर्ग एवं 'इण गतौ' धातु से निष्पन्न है। उप् का अर्थ - समीप, अधि का अर्थ - आधिक्य, इण् का अर्थ-स्मरण,
अथवा अध्ययन करना, गमन करना है। स्पष्टतया जिनके समीप आगम सिद्धान्तों का अधिकता के साथ अध्ययन किया जाता है, ज्ञान प्राप्त किया जाता है, वह उपाध्याय है।
• संस्कृत-हिन्दी कोश में उपाध्याय के अध्यापक, गुरु, अध्यात्म गुरु, धर्म शिक्षक, आचार्य से निम्न पदवी धारक आदि अर्थ बताये गये हैं।