Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...115
उक्त कथन का आशय यह है कि सूत्र दान के मुख्य अधिकारी उपाध्याय होते हैं अत: वे वाचक कहलाते हैं तथा उनके द्वारा प्रवर्तित परम्परा वाचक वंश कहलाती है। वाचनाचार्य तो उपाध्याय द्वारा नियुक्त करने पर या उपाध्याय के अभाव में वाचना देते हैं। - प्राच्य विद्याओं के पारंगत डॉ. सागरमलजी जैन का कहना है कि कुछ परम्पराओं में सामान्य वाचनाओं के लिए वाचनाचार्य की नियुक्ति की जाती है
और द्वादशांगी (मूलागमों) का अध्ययन करवाने के उद्देश्य से उपाध्याय की नियुक्ति होती है। उपाध्याय पदग्राही शिष्य में आवश्यक योग्यताएँ __ उपाध्याय पद पर नियुक्त किया जाने वाला शिष्य किन गुणों से युक्त होना चाहिए ? इस सम्बन्ध में अन्वेषण किया जाये तो एक मात्र व्यवहारसूत्र में इस विषयक उल्लेख प्राप्त होता है। व्यवहारसूत्र में इस पद के लिए उपर्युक्त योग्यताओं के साथ-साथ दीक्षा पर्याय का भी निर्देश किया गया है।
इसमें कहा गया है कि उपाध्याय पदारूढ़ शिष्य न्यूनतम तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला हो तथा आचार, संयम, प्रवचन, प्रज्ञप्ति, संग्रह एवं उपग्रह करने में भी कुशल हो। इसी के साथ अक्षुण्ण, अभिन्न एवं अशबल चारित्र वाला और असंक्लिष्ट आचार वाला हो, बहुश्रुत एवं बहुआगमज्ञ हो तथा कम से कम आचार प्रकल्प धारण करने वाला हो। इन गुणों से सम्पन्न मुनि उपाध्याय पद देने-लेने के योग्य होता है।
उपर्युक्त योग्यताओं के अभाव में किसी की दीक्षा पर्याय तीन वर्ष की भी हो जाए, तब भी वह उपाध्याय पद के योग्य नहीं होता है। इसके सिवाय तीन वर्ष से अधिक पर्याय वाले एवं श्रृत अध्यापन की योग्यता वाले किसी भी मुनि को यह पद दिया जा सकता है।34
आचारकुशल आदि का सामान्य स्वरूप इस प्रकार है35_
1. आचारकुशल - जो ज्ञानाचार एवं विनयाचार में कुशल है वह आचारकुशल कहलाता है। जैसे- गुरु आदि के आने पर खड़ा होने वाला, उन्हें आसन, चौकी आदि प्रदान करने वाला, शिष्यों एवं प्रतीच्छिकों (अध्ययन की उपसंपदार्थ समागत साधुओं) को गुरु के प्रति श्रद्धान्वित करने वाला, आदरसत्कार करके उन्हें प्रसन्न रखने वाला, सरल स्वभावी, स्थिर मन वाला निर्धारित