Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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114... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रवर्द्धमान रखते हैं और समग्र जैन तीर्थ में चतुर्थ परमेष्ठि के रूप में वन्द्य एवं आराध्य होते हैं।
उपाध्याय ही सूत्र वाचना के अधिकारी क्यों ?
व्यवहारभाष्य के अनुसार उपाध्याय सूत्र की वाचना देते हुए स्वयं अर्थ का भी अनुचिन्तन करते हैं, जिससे उनकी सूत्र और अर्थ में स्थिरता बढ़ जाती है। वे गण के सूत्रात्मक ऋण से मुक्त हो जाते हैं।
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• आगामी काल में आचार्य पद से अप्रतिबन्धित होने के कारण सूत्र का अनुवर्त्तन करते हुए उसके अत्यन्त अभ्यस्त हो जाते हैं।
• गच्छान्तर से आगत साधुओं को वाचना देकर अनुगृहीत करते हैं ।
• उपाध्याय भगवन्त मोहजयी आदि गुणों से सम्पन्न होने के कारण सूत्र वाचना के लिए पूर्ण अधिकृत होते हैं। 27
आचार्य - उपाध्याय एवं वाचनाचार्य में मुख्य अन्तर ?
आचार्य, उपाध्याय एवं वाचनाचार्य इन तीनों में मुख्य रूप से निम्न अन्तर हैं
• आचार्य आचार की देशना देते हैं और उपाध्याय शिक्षा का कार्य करते हैं।
• आचार्य अर्थ पदों की वाचना देते हैं और उपाध्याय सूत्र पदों की वाचना करते हैं। 28
• कदाचित सूत्रवाचक उपाध्याय अर्थवाचक भी होते हैं। 29
• उपाध्याय द्वारा संदिष्ट उद्देश- समुद्देश- अनुज्ञा-अनुयोग का प्रवर्त्तन करने वाला अर्थात सूत्र और अर्थ की वाचना देने वाला वाचनाचार्य कहलाता है। 30 • आगमिक टीकाओं में उपाध्याय को वाचक नाम से भी सम्बोधित किया गया है और उसकी परम्परा को वाचकवंश कहा है। 31
आवश्यकचूर्णि के अनुसार जो परम्परा से आचारांग आदि आगमों के सूत्र और अर्थ की वाचना देता है, वह वाचकवंश है | 32
नन्दीचूर्णि के अनुसार 1. जो शिष्यों को कालिकश्रुत और पूर्वश्रुत की वाचना देते हैं, वे वाचक हैं 2. जिन्होंने गुरु के सान्निध्य में शिष्य भाव से श्रुत का वाचन किया है, वे वाचक हैं तथा उनकी वंश-परम्परा वाचकवंश कहलाती है।33