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112...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विरूदावली से उत्साहित हुआ शूरवीर शत्रु को पराजित करता है वैसे ही उपाध्याय चतुर्विध संघ की गुणकीर्तन रूप विरूदावली से उत्साहित होकर मिथ्यात्व का पराजय करते हैं।
__4. हस्ति - जिस प्रकार हथिनियों से घिरा हुआ साठ वर्ष का बलिष्ठ हाथी किसी से पराजित नहीं होता, उसी प्रकार उपाध्याय औत्पातिकी आदि बद्धि रूपी हथिनियों एवं विविध विद्याओं से युक्त होकर वितण्डवादियों से पराजित नहीं होता है।
5. वृषभ - जिस प्रकार तीखें सींगों वाला, बलिष्ठ स्कन्धों वाला एवं अनेक गायों के समूह से युक्त वृषभ (बैल) यूथ के अधिपति के रूप में सुशोभित होता है उसी प्रकार उपाध्याय स्वशास्त्र-परंशास्त्र रूप तीक्ष्ण सींगों से, गच्छ का गुरुतर कार्यभार उठाने में समर्थ स्कन्ध से तथा साधु आदि संघ के अधिपतिआचार्य के रूप में सुशोभित होता है।
6. केसरी सिंह - जिस प्रकार तीक्ष्ण दाढ़ों वाला, पूर्ण वयस्क एवं अपराजेय केसरी (सिंह) वन्य प्राणियों में श्रेष्ठ होता है उसी प्रकार बहुश्रुत, नैगमादि सात नय रूप दाढ़ों से एवं प्रतिभा आदि गुणों से परवादियों को पराजित करने के कारण दुर्जय एवं श्रेष्ठ होता है। . ____7. वासुदेव - जैसे तीन खण्ड का अधिपति वासुदेव शंख, चक्र और गदा को धारण करने वाला और सात रत्नों से सुशोभित होता है उसी प्रकार उपाध्याय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप त्रिविध आयुधों से युक्त एवं सात नय रूपी सप्त रत्नों से सुशोभित होते हैं।
8. चक्रवर्ती – जिस प्रकार चक्रवर्ती छः खण्डों का अधिपति और चौदह रत्नों को धारण करने वाला होने से परम सुशोभित होता है उसी प्रकार उपाध्याय षट् द्रव्य के ज्ञाता तथा चौदहपूर्व रूप चौदह रत्नों के धारक होने से शोभा पाते हैं।
9. इन्द्र - जिस प्रकार हजार नेत्रों वाला और हाथ में वज्र रखने वाला पुरन्दर (शक्र) देवों का अधिपति होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी देवों द्वारा पूज्य होने से एवं सहस्रों तर्क-वितर्क वाले तथा अनेकान्त, स्यादवाद रूप वज्र के धारक असंख्य भव्य प्राणियों के स्वामी होते हैं।
10. सूर्य - जिस प्रकार अन्धकार को नष्ट करने वाला एवं सहस्र किरणों