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66... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
2. श्रुत स्थविर के प्रति भक्ति रखना चाहिए। जैसे उनके अभिप्राय अनुसार वर्तन करना, उनके योग्य आहार लाकर देना, उनकी प्रशंसा करना, गुणोत्कीर्त्तन करना, उनके समक्ष नीचे आसन पर बैठना और उनके निर्देश की अनुपालना करना आदि का वर्त्तन करना चाहिए।
3. पर्याय स्थविर दीक्षा पर्याय में ज्येष्ठ होते हैं अतः उनका बहुमान करने हेतु उनके आने पर खड़े होना, उनके हाथ से दण्ड ग्रहण करना आदि करना चाहिए।15
स्थविर मुनि जिन शासन के लिए ऋद्धि रूप होते हैं अतः उनका तिरस्कार, अभक्ति आदि करने से विराधना होती है और गुरु चौमासी का प्रायश्चित्त आता है।
स्थविर स्थविरकल्प स्थविरकल्पी का स्वरूप
स्थविर - गच्छ में वास करने वाले साधुओं का एक प्रकार । निशीथचूर्णि के अनुसार गच्छ में पाँच प्रकार के श्रमण होते हैं - आचार्य, वृषभ (उपाध्याय/अभिषेक), भिक्षु, स्थविर और क्षुल्लक | 16 इनमें एक स्थविर नाम भी है।
स्थविरकल्प - संघबद्ध साधना करने वाले श्रमण- श्रमणी वर्ग की आचार मर्यादा जैसे- नवकल्पी विहार करना, शय्यातर आहार का वर्जन करना, प्रमाणोपेत उपधि रखना आदि स्थविरकल्प कहलाता है ।
स्थविरकल्पी - संघबद्ध या गच्छबद्ध होकर संयम धर्म की साधना करने वाले श्रमण-श्रमणी स्थविरकल्पी कहलाते हैं। बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार जो संयमी पृथ्वीकाय संयम आदि सतरह प्रकार के संयम का यथावत पालन करते हैं, अर्हत वाणी के द्वारा शासन प्रभावना करते हैं, सूत्र पौरूषी और अर्थ पौरूषी द्वारा संयम को उद्योतित करते हैं, शिष्यों को ज्ञान, दर्शन और चारित्र में निष्पन्न करते हैं, ज्ञानादि की परम्परा को अविच्छिन्न रखते हैं, जंघाबल आदि क्षीण होने पर वृद्धावास करते हैं, वे स्थविरकल्पी होते हैं। 17
इस प्रकार गच्छ से आबद्ध होते हुए विशिष्ट मर्यादा का पालन करने वाले स्थविर, गच्छबद्ध आचार संहिता का पालन करना स्थविर कल्प और गच्छ विशेष में वास करने वाले स्थविर कल्पी कहे जाते हैं। वस्तुतः ये तीनों शब्द एक-दूसरे के सम्पूरक हैं। स्थविर मुनि में स्थविर कल्प और स्थविर कल्पी दोनों