________________
स्थविर पदस्थापना विधि का पारम्परिक स्वरूप...65 2. श्रुत स्थविर - आचारांग आदि चार अंग, चार छेद, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक और आवश्यकसूत्र को अर्थ सहित कण्ठस्थ करने वाला श्रमण श्रुत स्थविर कहलाता है।
3. पर्याय स्थविर - बीस वर्ष या उससे अधिक की दीक्षा पर्याय वाला . श्रमण पर्याय स्थविर कहा गया है।11
स्थानांगसूत्र में स्थविर के दस प्रकार प्रतिपादित हैं - 1. ग्राम स्थविर 2. नगर स्थविर 3. राष्ट्र स्थविर 4. प्रशास्ता स्थविर 5. कुल स्थविर 6. गण स्थविर 7. संघ स्थविर 8. जाति स्थविर 9. श्रुत स्थविर और 10. पर्याय स्थविर।12
ग्राम, नगर और राष्ट्र की व्यवस्था करने वाले बुद्धिमान, लोकमान्य और शक्तिसम्पन्न मुनियों को क्रमश: ग्राम स्थविर, नगर स्थविर और राष्ट्र स्थविर कहा जाता है। धर्मोपदेशक प्रशास्ता स्थविर कहलाता है। कुल, गण और संघ - ये तीनों शासन की इकाइयाँ रही हैं। सर्वप्रथम कुल की व्यवस्था थी। उसके पश्चात गणराज्य और संघराज्य की व्यवस्था प्रचलित हुई। इसमें जिस व्यक्ति पर कल आदि की व्यवस्था का दायित्व होता है वह क्रमश: कुल स्थविर, गण स्थविर, संघ स्थविर कहलाता है। यह लौकिक व्यवस्था का पक्ष है। शेष तीन लोकोत्तर पक्ष में अन्तर्निहित है। वृत्तिकार ने सूचित किया है कि कल, गण और संघ की व्याख्या लौकिक और लोकोत्तर दोनों दृष्टियों से की जा सकती है।13
पुनश्च लोकोत्तर व्यवस्था के अनुसार एक आचार्य के शिष्यों को कुल, तीन आचार्य के शिष्यों को गण और अनेक आचार्यों के शिष्यों को संघ कहा जाता है। इनमें जिस मुनि पर शिष्यों में यथार्थ श्रद्धा उत्पन्न करने और विचलित श्रद्धावान को पुन: धर्म में स्थिर करने का दायित्व होता है, वह स्थविर कहलाता है।14 स्थविरों के प्रति करणीय कृत्य
पूर्वोल्लेखित त्रिविध स्थविरों के प्रति निश्रावर्ती मुनियों को यथोचित व्यवहार करना चाहिए, इससे ज्ञान वृद्धि एवं चारित्र बल बढ़ता है तथा स्थविरों की दीर्घ परम्परा अविच्छिन्न रहती है। ___1. जाति स्थविर के प्रति वैयावृत्य भाव रखना चाहिए। जैसे उनके आहार, उपधि, शय्या और संस्तारक की समुचित व्यवस्था करना। पदयात्रा में उनकी उपधि वहन करना, उचित समय पर पानी पिलाना आदि व्यवहार रखना चाहिए।