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58...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में दीजिए। गुरु बोलें- 'अहमेअस्स साहुस्स खमासमणाणं हत्येणं दिगाइ अणुजाणामि' गीतार्थ मुनियों द्वारा आचरित परम्परा का अनुसरण करते हुए मैं इस मुनि के लिए दिशा (विहार) आदि की अनुज्ञा देता हूँ।
2. शिष्य दूसरा खमासमण देकर कहें - 'संदिसह किं भणामि?' आज्ञा दीजिए, मैं क्या कहूँ ? तब गुरु कहे - 'वंदित्ता पवेयह' वन्दन करके . प्रवेदित करो।
3. तदनन्तर शिष्य तीसरा खमासमण देकर बोलें - 'इच्छकारि तुम्हे अम्हं दिगाइ अणुन्नाओं' 'इच्छामो अणुसटुिं' आपने मुझे दिशादि की अनुमति दे दी है, अब आपके अनुशिष्टि की इच्छा करता हूँ। प्रत्युत्तर में गुरु कहे - 'सम्म अवधारय अन्नेसिपि पवेयह' - इस प्रवर्तक पद का सम्यक प्रकार से अवधारण करो तथा अन्य मुनियों में भी इस पद का प्रवर्तन करो।
4. फिर शिष्य चौथा खमासमण देकर कहें - 'तुम्हाणं पवेइओ साहूणं पवेएमि' आपको इस पद ग्रहण के सम्बन्ध में प्रवेदित किया, आज्ञा दीजिए, अब मुनि संघ में इस पद स्वीकार का प्रवेदन करता हूँ।
5. फिर शिष्य पांचवाँ खमासमण देकर एक-एक नमस्कार मन्त्र का स्मरण करते हुए गुरु और समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें।
6. उसके बाद पुनः खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करके कहें - 'तुम्हाणं पवेइओ, साहूणं पवेइओ संदिसह काउस्सग्गं करेमि' मैं आपको सम्यक् प्रकार से इस पद सम्बन्धी जानकारी दे चुका हूँ, मुनि संघ में भी इस कार्य की सूचना दे चुका हूँ, अब आपकी अनुमति पूर्वक कायोत्सर्ग करता हूँ।
7. तदनन्तर सातवें खमासमण के द्वारा वन्दन कर 'दिगाइ अणुजाणावियं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थसूत्र बोलकर एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहें।
मन्त्रदान – फिर शुभ लग्न का समय आ जाने पर गुरु शिष्य के दाहिने कर्ण में निम्न मन्त्र को तीन बार सुनाएं
"ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो सिद्धाणं ॐ नमो आयरियाणं ॐ नमो उवज्झायाणं ॐ नमो लोएसव्वसाहूणं ॐ नमो अरिहओ भगवओ महइ महावीर वद्धमाणसामिस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा वीरेवीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जए विजए जयंते अपराजिए अणिहए ॐ ह्रीं स्वाहा।"