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वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप...43 इस सम्बन्ध में कोई निर्देश नहीं है, केवल लग्न वेला में वर्धमानविद्या मन्त्र सुनाने का उल्लेख है।
निषद्या सम्बन्धी - प्राचीनसामाचारी0 एवं विधिमार्गप्रपान में नूतन वाचनाचार्य को अभिमन्त्रित आसन विधिपूर्वक समर्पित करने का उल्लेख है। तिलकाचार्यसामाचारी92 में 'निषद्या' के स्थान पर 'कम्बल' शब्द का प्रयोग है
और उसे अंतरपट (उत्तरपट्ट) सहित प्रदान करने का निर्देश है। आचारदिनकर में 'आसन' समर्पित करने का उल्लेख तो नहीं है, किन्तु नवीन वाचनाचार्य द्वारा एक कम्बल परिमाण आसन के ऊपर बैठकर व्याख्यान करने का निर्देश जरूर है।93 इससे सिद्ध होता है कि रूद्रपल्लीय वर्धमानसूरि की सामाचारी में भी अभिमन्त्रित आसन प्रदान किया जाता है। यहाँ आसन, निषद्या और कम्बल तीनों समानार्थक हैं तथा इनका तात्पर्य एक अखण्ड कम्बल है। प्राचीन परम्परा के अनुसार वाचनाचार्य मुनि एक कम्बल परिमाण आसन के ऊपर बैठकर ही व्याख्यान आदि करते हैं, अत: कम्बल परिमाण आसन दिया जाता है।
मन्त्र सम्बन्धी – तिलकाचार्यसामाचारी के अनुसार नूतन वाचनाचार्य को वर्धमानविद्या का निम्न मन्त्र सुनाया जाता है94____ "ॐ नमो भगवओ वद्धमाणसामिस्स जस्सेयं चक्कं जलंतं गच्छइ आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जूए वा रणे वा रायंगणे वा जाणे वा वाहणे वा बंधणे मोहणे थंभणेउं सव्वजीवसत्ताणं अपराजिओ भवामि स्वाहा।"
प्राचीनसामाचारी में वर्धमानविद्या का निम्न मन्त्र उल्लेखित है95
"ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो सव्वसाहणं, ॐ नमो ओहिजिणाणं, ॐ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ नमो सव्वोहिजिणाणं, ॐ नमो अणंतोहिजिणाणं, ॐ नमो अरिहओ भगवओ महावीरस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा वीरे वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जए विजए जयंते अपराजिए अणिहए ॐ ह्रीं स्वाहा।"
आचारदिनकर में 'ॐ नमो ओहिजिणाणं' से लेकर 'ॐ नमो अणंतोहिजिणाणं' इन चार लब्धि पदों को छोड़कर शेष मन्त्र पूर्ववत ही सुनाने का निर्देश है।96