Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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28...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में है, उपधान तप करता है, प्रिय व्यवहार करता है और प्रिय बोलता है वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है।40
दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि जो मुनि, आचार्य और उपाध्याय की शुश्रुषा और आज्ञा पालन करते हैं उनकी शिक्षा जल से सींचे हुए वृक्ष की भांति बढ़ती है।41 ___ आवश्यकनियुक्तिकार का अभिमत है कि जो शिष्य विनीत है, अञ्जलियुक्त मस्तक झुकाकर गुरु के समक्ष उपस्थित रहता है, गुरु के अभिप्राय का अनुवर्तन करता है, गुरुजनों की आराधना करता है, उसे गुरु अनेक प्रकार का ज्ञान शीघ्र करवा देते हैं।42
विशेषावश्यकभाष्य में कहा गया है कि गुरु का अतिशय विनय करने वाला, देश और काल के अनुकूल भोजन, वस्त्र, पात्र, औषध आदि उपलब्ध कराने वाला, गुरु के अभिप्राय को जानने वाला शिष्य सम्यक् श्रुत को प्राप्त करता है।43
इस विषय में अन्य ग्रन्थकारों ने भी सकारात्मक पक्ष रखे हैं।
सार रूप में कहा जाए तो विनीत, सेवापरायण, गुर्वाज्ञानुसारी एवं संयमनिष्ठ शिष्य शिक्षा को पूर्ण रूप से आत्मस्थ कर सकता है। शिक्षा के बाधक तत्त्व
शिक्षाभ्यासी को निम्न पाँच दुर्गुणों का सर्वथा परिहार करना चाहिए क्योंकि ये शिक्षा में बाधा पहुँचाते हैं - 1. अहंकार 2. क्रोध 3. प्रमाद 4. रोग
और 5. आलस्य। वाचनाभंग के स्थान
व्यवहारभाष्य के अनुसार जो शिष्य वाचनाचार्य से दूर खड़े होकर, आसनस्थ होकर, गुरु के अतिनिकट बैठकर या अतिनिकट खड़े होकर कुछ पूछता है अथवा सुनता है, जो बद्धांजलि युक्त होकर नहीं सुनता है, पाठ समाप्ति पर वन्दन नहीं करता है, इधर-उधर देखता हुआ सुनता है, गुरु के अभिमुख न होकर अधोमुख या ऊर्ध्वमुख हो सुनता है, जिस किसी के साथ बातें करता हुआ या अनुपयुक्त हो सुनता है, हँसता हुआ पूछता है तो उसकी वाचना दूषित होती है, खण्डित होती है तथा इस अविधि से सूत्र और अर्थ ग्रहण करने वाला क्रमशः लघुमास और गुरुमास का प्रायश्चित्त प्राप्त करता है।