Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप...31 के प्रति समान व्यवहार करती हो, शिक्षण-प्रशिक्षण और सारणा-वारणा में उद्यमशील हो,सामाचारी कुशल हो, स्वाध्याय-ध्यान में संलग्न हो, उसकी निश्रावर्ती साध्वियाँ उसके भय से अकरणीय कार्य नहीं करती हो, स्खलना होने पर उग्रदण्ड देती हो, उपधि आदि के संग्रह में विशारद हो तथा विकथाओं का सदा वर्जन करती हो - इन गुणों से सम्पन्न साध्वी के पास वाचना ली जा सकती है। यद्यपि वाचना का मूलाधिकारी वाचनाचार्य साधु ही होता है फिर भी कुछ आवश्यक गुणों से युक्त प्रवर्तिनी (साध्वी) को भी वाचना का अधिकार दिया
गया है।50
• निशीथसूत्र के अनुसार वाचना पाठ उत्क्रम-विधि से दिए-लिए जाये, व्युत्क्रम से आगम वाचना का निषेध किया गया है। जो मुनि पूर्ववर्ती आगम ग्रन्थों की वाचना दिए बिना अग्रिम ग्रन्थों की वाचना देता है, आचारांग से पूर्व छेदसूत्र और दृष्टिवाद की वाचना देता है उसे लघु चातुर्मास का प्रायश्चित आता है।51 आवश्यकसूत्र से बिन्दुसार पूर्व पर्यन्त श्रुत की व्युत्क्रम से वाचना देने पर आज्ञाभंग आदि दोष लगते हैं। निशीथचूर्णि में वर्णित श्रुत वाचना का क्रम इस प्रकार है52___ अंग - आचारांग के पश्चात सूत्रकृतांग, सूत्रकृतांग के पश्चात स्थानांग आदि।
श्रुतस्कन्ध - आवश्यक के पश्चात दशवैकालिक अथवा आचारांग श्रुतस्कन्ध के पश्चात आचारचूला श्रुतस्कन्ध आदि।
अध्ययन - सामायिक अध्ययन के पश्चात चतुर्विंशतिस्तव अध्ययन अथवा शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन के पश्चात लोकविचय अध्ययन आदि। __उद्देशक - प्रथम उद्देशक के पश्चात द्वितीय उद्देशक आदि। इसी प्रकार दशवैकालिक के पश्चात उत्तराध्ययन, आचारांग आदि चरणानुयोग के पश्चात छेदसूत्र, धर्मानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग पठनीय है।
पूर्वोक्त क्रमपूर्वक श्रुतवाचना देने-लेने का कारण यह है कि जिसकी मति पूर्ववर्ती उत्सर्ग सूत्रों से भावित नहीं है वह अग्रिम अपवाद सूत्रों में श्रद्धा नहीं कर सकता, प्रत्युत अति परिणामिक बन जाता है। पूर्ववर्ती श्रुत पढ़ने में भी उसकी रूचि नहीं रहती, इससे आदि सूत्रों की हानि होती है। वह आद्य सूत्रों का ग्रहण किये बिना अग्रिम सूत्रों को पढ़कर बहुश्रुती तो बन जाता है पर पूर्ण