Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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40... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
2. फिर शिष्य कहें 'संदिसह किं भणामो ?' आज्ञा दीजिए, मैं क्या कहूँ ? गुरु कहें - 'वंदित्ता पवेयह' वन्दन करके प्रवेदन करो ।
3. शिष्य पुनः एक खमासमण देकर कहें - 'इच्छाकारेण तुम्भेहिं अम्हं वायणारियपय मणुन्नायं -3 खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं अन्नेसिं पि पवेयणीयं' हे भगवन्! आपके द्वारा इच्छापूर्वक मुझे वाचनाचार्य पद पर स्थापित होने की अनुमति दी गयी है ? ऐसा निवेदन करने पर गुरु, तीन बार 'अणुन्नायं' शब्द कहें। इसका आशय है कि तुम्हें इच्छापूर्वक वाचनाचार्य पद पर स्थापित होने की अनुज्ञा दी गयी है । इसी के साथ पूर्व पुरुषों के द्वारा आचरित सूत्र के द्वारा, अर्थ के द्वारा, सूत्रार्थ के द्वारा इस पद को सम्यक् प्रकार से धारण करना, चिरकाल तक इस पद का पालन करना तथा अन्य मुनियों को भी इस पद पर स्थापित कर पूर्व परम्परा को अविच्छिन्न रखना।
4. उसके बाद शिष्य एक खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन कर कहें 'इच्छामो अणुसट्ठि' मैं आपके वाचनाचार्य पद सम्बन्धी अनुशिक्षण की इच्छा करता हूँ।
5. शिष्य पुनः वन्दन पूर्वक कहें 'तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि' मैंने आपको इस पद के अनुज्ञापनार्थ प्रवेदन किया, अब आज्ञा दीजिए, मैं सभी साधुओं को इस विषय में बताना चाहता हूँ।
6. उसके पश्चात नमस्कारमन्त्र का उच्चारण करते हुए गुरु सहित समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। प्रदक्षिणा के समय 'नित्थारपारगो होहि, गुरुगुणेहिं वड्ढाहि' कहते हुए गुरु एवं चतुर्विध संघ पदग्राही शिष्य पर वासचूर्ण एवं अक्षत का निक्षेपण करें।
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7. उसके बाद शिष्य एक खमासमण देकर कहें 'तुम्हाणं पवेइयं, साहूणं पवेइयं संदिसह काउसग्गं करेमि' मैंने आपको प्रवेदित किया, साधुओं को प्रवेदित किया, अब आपकी अनुमति पूर्वक कायोत्सर्ग करता हूँ, इतना कहकर 'वायणायरियपय थिरीकरणत्थं करेमि काउस्सग्गं' पूर्वक अन्नत्थसूत्र - बोलकर एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें । कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें।
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आसनदान तदनन्तर शिष्य एक खमासमण देकर कहें
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