Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप...27 भाष्य, उत्सर्ग-अपवाद और निश्चय-व्यवहार की अपेक्षा नय, निक्षेप, प्रमाण
और अनुयोगद्वार आदि विधि से व्याख्या सहित पढ़ाए। यह अनुयोग विधि है। इस क्रम से अध्यापन कार्य करने पर गुरु शिष्य को श्रुत पारंगत बना सकता है।35 - श्रुत-अध्ययन के उद्देश्य
दशवैकालिकसूत्र में निम्न चार उद्देश्यों को लेकर श्रुत अध्ययन करने का निर्देश दिया गया है36
1. मुझे श्रुत का लाभ होगा अर्थात मेरे श्रुत ज्ञान में अभिवृद्धि होगी। 2. मेरे चित्त की एकाग्रता में अभिवृद्धि होगी। 3. मैं स्वयं को धर्म में स्थापित कर पाऊँगा। 4. मैं स्वयं धर्म में स्थिर होकर दूसरों को उसमें स्थिर करूँगा।
फलितार्थ यह है कि साधु-साध्वी को इन चार कारणों से ही शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए अपितु प्रसिद्धि, पद-प्रतिष्ठा, प्रशंसा या अन्य किसी भौतिक स्वार्थ सिद्धि के उद्देश्य से श्रुत अध्ययन नहीं करना चाहिए।
उत्तराध्ययनसूत्र में श्रुत अध्ययन के निम्न तीन प्रयोजन बतलाए गये हैं371. परम अर्थ (मोक्ष) की प्राप्ति के लिए। 2. स्वयं में सिद्धि प्राप्त करने की योग्यता को प्रकट करने के लिए।
3. दूसरों को सिद्धि प्राप्त कराने की क्षमता विकसित करने के लिए इन तीन उद्देश्यों से श्रुत-अध्ययन करें।
अनुयोगद्वार में श्रुत-अध्ययन के निम्नोक्त तीन उद्देश्य कहे गये हैं38_ 1. अध्यात्म की उपलब्धि। 2. उपचित (बंधे हुए) कर्मों का क्षय। 3. नये कर्मों के आस्रव का निरोध।
जिससे चित्त में शुभ भावों का संचार होता है, अध्यात्म की उपलब्धि होती है तथा बोधि-ज्ञान, संयम और यथार्थ तत्त्वों की प्राप्ति होती है वही अध्ययन है।39 अध्ययन का मूलोद्देश्य परमतत्त्व की उपलब्धि करना ही है। शिक्षा (वाचना) ग्रहण हेतु आवश्यक गुण __शिक्षा को कौन हृदयङ्गम कर सकता है ? इस सम्बन्ध में उत्तराध्ययनसूत्र का कहना है कि जो सदा गुरुकुल में वास करता है, एकाग्र चित्त वाला होता