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नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण यह गाथा अनुष्टुप् छंद में निबद्ध है। अनुष्टुप् के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं किन्तु यह नौ वर्ण हैं अत: सरिसव के स्थान पर सस्तव' पळ अधिक संगत लगता है। 'सस्सव' पाठ से मौलिक अर्थ का हास भी नहीं होता क्योंकि सांग के लिए सस्तव और सरिसब दोनों शब्दों का प्रयोग मिलता है। इसी प्रकार 'अगणी निब्बेय मुगारे (उनि ८८) में नौ वर्ग होते हैं. जिसमें पांचवां वर्ण दीर्घ है, जबकि अनुष्टुप् में पांचवां वर्ण ह्रस्व होना चाहिए। यहां 'अग्गी निब्वेय मुग्गरे पाठ छंद की दृष्टि से सन्धक प्रतीत होता है। हस्तन्नतियों में पाठ न मिलने के कारण परिवर्तन का निर्देश हमने मूलपाठ में न करके टिचण ने कर दिया है। मूल पाठ में परिवर्तन न करने का एक मुख्य कारण यह रहा कि बिना ब्रमण परिवर्तन करने से ग्रंथ की मौलिकता और रचनाकर के प्रति न्याय नहीं होता। दूसरा कारण यह भी है कि वेदों में सात, नौ और दस वर्षों के अनुष्टुप् चरण को मिलते है अतः यह भी संभव है कि स्वयं रचनाकार ने ही ऐसे प्रयोग किए हों। नियुक्ति-साहित्य में भी ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जैसेदोमासकए कज्ज (उनि २४९) में सात ही वर्ण है।
छंद की दृष्टि से नियुक्तिकार ने अनेक स्थलों पर दीर्घ मात्रा का ह्रस्वीकरण एवं हस्त मात्रा का दीर्धीकरण भी किया है, जैसे
___ कम्मे नोकम्मे या उनि ६७) यहां अकार का आकार हुआ है। ते होती पोंडरीगा उ (सूनि १४८) यहां इकार का ईकार हुआ है। सरिराई (आनि २४०) यहां ईकार का इकार हुआ है।
कहीं कहीं वर्णो का द्वित्व भी हुआ है, जैसे—सच्चित्त आदि ।
अनेक स्थलों पर छंद के कारण विभक्ति एवं वचन में व्यत्यय भी मिलता है। कहीं कहीं टीकाकार ने इसका उल्लेख भी किया है। छंद की दृष्टि से नियुक्ति में अनेक स्थलो पर निवित्तिक प्रयोग भी मिलते हैं। छंबानुलोम के कारण अनेक स्थलों पर इ, जे. मो, च, य आदि पादपूर्ति रूप अवयवों का प्रयोग भी हुआ है।
प्राकृत साहित्य में अलाक्षणिक मकार के प्रयोग तो अनेक मिलते हैं लेकिन नियुक्तिकार ने छंद की दृष्टि से अलाक्षणिक बिंदु का प्रयोग भी किया है।
मज्जाउज्ज' (उनि १४५) कहीं कहीं मात्रा कम करने के लिए बिंदु का लोप भी हुआ है— अरई अचेल इत्थी' (उनि ७६) कसाय वेदणं (उनि ५३)
कहीं कहीं नियुक्तिकार ने छंदों का मिश्रण भी किया है। एक ही गाथा में अनुष्टुप् और आर्या-- दोनों का प्रयोग हुआ है। जैसे तीन चरण आर्या के और एक चरण अनुष्टुप् का। इसी प्रकार कहीं तीन अनुष्टुप् के तथा एक चरग आर्या का, जैसे—आनि ३६४ में प्रथम चरण अनुष्टुप् तथा शेष तीन चरण आर्या में हैं।
१. वैदिक ग्रंथों में जिस घर में एक अक्षर कम या अधिक पाताल १७/२)। होता है, उसे क्रमश: निचित और भूरिक कहा जाता है २. अशांटी प. १४२; मज्जाउज बिदोरला मणिकत्वात्। तथा जिसमें दो अक्षर कम य अधिक हो उसे दिरात ३. उशांटी प. ७६; अचेल ति प्राकृतत्वाद् बिंदुलोप.। और स्वराज्य कहते हैं ( शौनकत प्रातिशाख्य ४. उशांटी प. ३४: कसाय वेदनं प्राकृतत्वाद् बिंदलोपः।
उचर रि प्राकृतत्वद विद्युतीय