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है । औदारिक, वैक्रिय और पाहारक ये तीन शरीर स्थूल कहलाते है। कार्मण और तैजस ये दो शरीर मूक्ष्म हैं । कर्मो का बध, भोग और क्षय स्थूल शरीर मे ही हुमा करते है, सूक्ष्म गरीर में नही । अत सर्व कर्मो से विमुक्त होना ही साधक का साध्य है। इसके अतिरिक्त भौतिक साध्य मिथ्यादृष्टि का होता है। उसके एक नही अनेक साध्य हो सकते है, जैसे कि पुत्र-लाभ, विनीता स्त्री को प्राप्ति, धन, बल, सता. रूप, उत्तम जाति, उत्तम कुल, राज्य, स्वर्गप्राप्ति आदि । परन्तु ये साध्य सम्यग्दृष्टि के नही हो सकते ।
जिसके बिना साधक अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता, अथवा जो लक्ष्य प्राप्ति में परम सहायक हो वह साधन कहलाता है । सम्यग्ज्ञान, सम्यक्त्रद्धा और सम्यक् चारित्र इन तीनो का समुदाय ही मोक्ष-प्राप्ति में सहायक है, अथवा अहिंसा, संयम और तप का समन्वय ही कर्मों से मुक्ति होने का साधन है, अथवा कायोत्सर्ग, मौन और ध्यान इनका सम्मिलित रूप ही साधन है, अथवा कर्म-योग, भक्ति-योग और ज्ञान-योग इनकी संतुलित अाराधना ही मोक्ष-प्राप्ति का साधन है, अथवा जीवो को अभयदान और धर्मदाब, सदाचार, सयम, तप, इच्छाओ का निरोध, भावना, नमस्कार मत्र का जप, साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने का उत्साह और पवित्र-सकल्प ये सब मोक्ष-प्राप्ति के अमोघ साधन हैं ।
नमस्कार