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७. बुद्ध-बोधित-सिद्ध-जो किसी धर्माचार्य आदि के उपदेश सुनकर पहले बुद्ध होकर फिर सिद्ध होते हैं, वे सब बुद्ध-बोधित-सिद्ध माने जाते है।
स्त्रीलिगसिद्ध-जो स्त्री के जन्म में मुक्त हुए हैं, वे स्त्री-लिंग-सिद्ध होते हैं।
६. पुरुष-लिग-सिद्ध-जिन्होंने पुरुष के जन्म में उच्च साधना द्वारा परमपद पाया है, वे पुरुष-लिग-सिद्ध कहलाते हैं ।
१०. नपुंसकलिग-सिद्ध-नपुसक की आकृति में परम पद पाने वाले नपुसक-लिग-सिद्ध कहे जाते है।
किसी भी सवेदी जीव को मोक्ष प्राप्त नही होता है, अवेदी को ही मोक्ष प्राप्त हुआ करता है। फिर भले ही वह किसी भी लिंग मे क्यो न हो।
११. स्वलिंग-सिद्ध-जो स्वलिंग अर्थात् प्रागमोक्त वेष से सिद्ध हुए हैं, वे स्वलिंग-सिद्ध है।
१२. अन्य-लिगसिद्ध-जिन साधकों का वेश आगमोक्त नही है, वे अन्य-लिंग सिद्ध कहलाते हैं । जो अन्य लिग मे रहकर रत्नत्रय के उत्कर्ष मे सफल हुए है, वे अन्यलिंग-सिद्ध है।
१३, गृहस्थ-लिग-सिद्ध-गृहस्थ वेश मे रहते हुए मोक्ष पाने वाले गृहस्थ-लिग-सिद्ध कहलाते है । रणाङ्गण में नमस्कार मन्त्र ]
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