Book Title: Namaskar Mantra
Author(s): Fulchandra Shraman
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 176
________________ १. आकाश की तरह साधु का मन निर्मल होता है । २. जैसे आकाश स्वयं किसी पर आधारित नहीं, बैसे ही साध भी किसी जड़-चेतन के मोह पर माधारित नही रहता, उसे किन्ही संसारी रिश्तेदारों की आवश्यकता नहीं रहती। ३. जैसे आकाश दूसरे पदार्थो का आधार है, वैसे ही साधु भी ज्ञान प्रादि गुणों का आधार होता है । ४. जैसे आकाश पर गर्मी-सर्दी का प्रभाव नहीं पड़ता, वैसे ही साधु पर भी सर्दी-गर्मी एव निन्दा-अपमान का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ५. जैसे प्राकाश वर्षा आदि अनुकल कारणों से प्रफुल्ल नही होता, वैसे ही साधु भी वन्दना, सत्कार-सन्मान आदि पाकर प्रसन्न नहीं होते। ६. जैसे आकाश को किसी भी अस्त्र-शस्त्र से छेदनभेदन नहीं होता, वैसे ही साधु के संयम आदि गुणो का भी कोई नाश नहीं कर सकता। ७. जैसे आकाश अपने आप में महान एवं अनन्त है, वैसे ही साधु भी लोक में महान एवं गुणों में अनन्त है। ६. तरुगण साधु वृक्ष के समान होता है-वृक्षों में भी सात विशेषताएं होती हैं, उन्हीं से साधु को उपमित किया गया है। १. जैसे वृक्ष सर्दी-गर्मी, वर्षा-मांधी सब कुछ सह लेता १९२J (षष्ठ प्रकाश

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