Book Title: Namaskar Mantra
Author(s): Fulchandra Shraman
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 192
________________ समाधान सात नयों की दृष्टि से हो सकता है । एक दृष्टिकोण से उसके अन्तरङ्ग स्वरूप को निर्धारित नहीं किया जा सकता, क्योंकि कुछ विद्वान् उसे उत्पन्न हुग्रा मानते है और कुछ अनुत्पन्न (शाश्वत) मानते है । नैगम नय की दृष्टि से सभी पदार्थ एवं गुण सदा से हैं, न कोई वस्तु नई उत्पन्न होती है और न नष्ट ही होती है, अत: इस नय की अपेक्षा नमस्कार अनुत्पन्न है। द्रव्य रूप से नमस्कार का अस्तित्व मिथ्यादृष्टि अवस्था में भी होता है, यदि ऐसा न माना जाए तो फिर नमस्कार उत्पन्न ही न होगा, क्योंकि सर्वथा असत् वस्तु की उत्पत्ति नही होती। इसी मान्यतावाले अविशुद्ध नैगम नय और संग्रह नय, ये दोनो है । शेष विशेषवादी नयों का कहना है कि उत्पाद और विनाश रहित वस्तु शशविषाण एवं वन्ध्यापुत्र की तरह असत् है, अत: इनके अभिमत में नमस्कार उत्पन्न होनेवाला है और जो उत्पन्न होता है वह विनाशशील भी होता है।। जो वस्तु उत्पन्न होती है उसके उत्पन्न करने के निमित्त भी होते है, अत: नमस्कार के तीन निमित्त हैं-शरीर, याचना और लन्धि । अविशुद्ध नैगम, सग्रह और व्यवहार इन तीन नयों की अपेक्षा नमस्कार के निमित्त उक्त तीनों ही है । नमस्कार मन्त्र के उत्पन्न होने में सब से पहले क्षयोपशम रूप लब्धि का होना अनिवार्य है, क्योंकि सबसे पहले किसी से नमस्कार मन्त्र सीखना पड़ता है, फिर उसकी वाचना की १६८] [षष्ठ प्रकाश

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