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कृतकृत्य हो गए हैं, अतएव अरिहन्त भी प्रव्रज्या ग्रहण करते समय सर्व प्रथम सिद्धों को नमस्कार करते हैं। इस अपेक्षा से सिद्धों का पद बड़ा होना ही चाहिये और वह पद पहले पाना चाहिये था । इस के उत्तर में भी यही कहा जा सकता है कि सिद्धों की अपेक्षा अरिहन्त पद बडा है, यह पद महान् उपकारी है. क्योंकि तीर्थ के प्रवर्तक अरिहन्त ही हुमा करते हैं । सिद्ध पद का निर्देश भी अरिहन्त ही करते हैं, भव्यों को सिद्ध पद का ज्ञान अरिहन्तों के उपदेश से ही होता है, अरिहन्त पद पाए बिना कोई भी जीव सिद्धत्व को प्राप्त नहीं कर सकता। इन्हीं कारणों से अरिहन्त पद को बड़ा माना गया है। अरिहन्त भगवान जब प्रव्रज्या ग्रहण करते समय सिद्धो को नमस्कार करते हैं तब वे छद्मस्थ होते हैं ।
यदि कोई यह शंका करे कि अरिहन्तों के उपदेश से सिद्ध भगवन्तों का जान होता है, अत: अरिहन्त ही तो बड़े हैं ? यह कथन भी कथंचित् सत्य हो सकता है, सर्वथा नहीं, क्योंकि जब इस पृथ्वी पर अरिहन्त नहीं होते, उस अवस्था में आचार्य प्रादि ही सिद्धों का ज्ञान कराते हैं, तब उस अवस्था मे वे भी प्रधान हो जाएंगे। वस्तुत: सिद्धत्व का पूर्ण परिज्ञान अरिहंतों को ही होता है, अत: वे ही सिद्ध भगवन्तों का ज्ञान करवा सकते हैं । इस दृष्टि से वे ही प्रधान माने जा सकते हैं। प्राचार्य आदि तो स्वतन्त्र देशना दे ही नहीं सकते,
[षष्ठ प्रकाश
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