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हैं । प्रत: मैं पांच पदों को नमस्कार करता हूं।
इह लोए अत्यकामा आरोग्गं अभिरई य निप्फत्ती। सिद्धी य सग्ग - सुकुल पज्जाई य परलोए ।
-विशेषावश्यक भाष्य गा. २९४२-२९५५ तथा ३२२३
नमस्कार महामन्त्र के प्रभाव से इस लोक में अर्थ, काम, प्रारोग्य, अभिरति और पुण्यानुबन्धी पुण्य की प्राप्ति होती है तथा परलोक में सिद्धि, स्वर्ग एवं उत्तम कुल की प्राप्ति होती है। प्राचार्य हरिभद्र के शब्दों में नमस्कार-माहात्म्य
अरहंत नमुक्कारो जीवं मोएइ भव सहस्साओ। भावेण-कीरमाणो होइ गुण - बोहिलाभाए ।
भाव-पूर्वक किया हुआ अरहंत भगवन्तों को नमस्कार चाहे प्रात्मा को अनन्त भवों से मुक्त कर के मुक्ति का लाभ न दे सके तो भी जन्मान्तर में यह नमस्कार-मंत्र सम्यग्दर्शन का कारण अवश्य बन जाता है।
अरहंत नमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं कुणंताणं । हिप्रयं अणुम्मुअतो विसुत्तिया वारो होइ ।।
ज्ञानादि रत्नत्रय रूप धन वाले तथा पुनर्भव का क्षय करने वाले उन महान् प्रात्माओं के हृदय में रहा हुआ यह अरिहंत नमस्कार दुान से हटाकर धर्मध्यान में लगाने वाला है। नमस्कार मन्द
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