Book Title: Namaskar Mantra
Author(s): Fulchandra Shraman
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 184
________________ जाता है, वैसे ही साधु के आगमन से भव्य जीवों का हृदय भी खिल उठता है। ३. जैसे सूर्य रात्रि में इकट्ठ हुए अन्धकार को क्षणमात्र में नष्ट कर देता है, वैसे भी साधु भी अनादिकालीन अज्ञानअन्धकार को ज्ञान-रश्मियों मे नष्ट कर देता है। ४. जैसे सूर्य अपनी तेजस्विता से देदीप्यमान होता है, वैसे ही साधु भी तपतेज से देदीप्यमान होता है । ५. जैसे सूर्य के अत्युज्ज्वल प्रकाश में ग्रह-नक्षत्र-तारों का प्रकाश बिल्कुल मन्द पड़ जाता है, वैसे ही साधु के प्रागमन से मिथ्यादृष्टियों तथा पाखण्डियों का प्रकाश और प्रचार मन्दा पड़ जाता है। ६. जैसे सूर्य के प्रकाश से अग्नि का प्रकाश फीका पड़ जाता है, वैसे ही साधु के ज्ञान-प्रकाश के सामने क्रोधियो की क्रोधाग्नि एवं हिंसकों की हिंसा रूप अग्नि भी मन्द पड़ जाती है। , जैसे सूर्य हज़ार किरणों से सुशोभित होता है, वैसे ही साधु भी हजारों गुणों से तथा चतुर्विध श्रीसघ से सुशोभित होता है। १२. पवन साधु पवन के समान होता है । यद्यपि पवन चक्षुग्राह्य नहीं होता, तथापि उसकी विशेषताओं से साधु को उपमित किया गया १६.] [ षष्ठ प्रकाश

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