Book Title: Namaskar Mantra
Author(s): Fulchandra Shraman
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 175
________________ मोती-मंगा आदि रत्नों की खान है वैसे ही साधु भी गुणरूप-रतों का भण्डार होता है। २. जैसे समुद्र कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता, वैसे ही श्रमण भी वीतराग भगवान की आज्ञा एवं मर्यादा को भंग नहीं करता। ३. जैसे सागर में सभी नदियों का संगम होता है, वैसे ही साधु में भी चार प्रकार की बुद्धियों का संगम होता है। ४. जैसे सागर मगरमच्छ आदि जल-जंतुओं से क्षुब्ध नहीं होता, वैसे ही साधु भी ममता-मोह भादि कषायों से. क्षुब्ध नहीं होता। ५. जैसे समुद्र कभी तट-सीमा काउल्लंघन नहीं करता, वैसे ही साधु भी गुणों को पाकर या दूसरों के अवगुणों को देखकर कभी भी अपने साधुत्व का उल्लंघन नहीं करता। ६. जैसे स्वयंभू-रमण समुद्र का जल शीत एवं स्वच्छ, होता है, वैसे ही साधु भी शान्त एवं निर्मल हृदयः वाले होते हैं। ७. जैसे समुद्र अथाह जल से पूर्ण एवं गंभीर होता है वैसे ही साधु भी गुण-समुद्र होने से गंभीर होते हैं । ५. प्रकाश साधुः प्राकार के समान होता है-पाकाश में जो साता विशेषताएं हैं उनसे साधु को उपमित किया गया है। (१५१.

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