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सकते है, सत्य और असत्य का निर्णय भी, उत्थान और पतन दोनों मे चक्षु-इन्द्रिय सहायक है, अत: जिस वस्तु, घटना एवं व्यक्ति को देखकर पाप में प्रवृत्ति हो, उसकी ओर न देखने के लिये दृष्टि पर नियंत्रण करना चक्षरिन्द्रिय निग्रह है।
३. घ्राणेन्द्रियनिग्रह-घ्राणेन्द्रिय-सूंघने की शक्ति वाली इन्द्रिय नाक अर्थात् इस के दो विषय है सुगन्ध और दुर्गन्ध । सुगन्ध को पाकर राग का होना और दुर्गन्ध को पाकर द्वेष का होना स्वाभाविक है। नाक से सुगन्धि या दुर्गन्धि का अनुभव करते हुए भी उन पर राग-द्वेष न करना घ्राणेन्द्रिय-निग्रह कहलाता है ।
४. रसनेन्द्रियनिग्रह-जिह्वा से रस का ज्ञान भी होता है, भाषा भी बोली जा सकती है और स्पर्शनेन्द्रिय का काम भी लिया जा सकता है । इससे लोग मित्र भी बन सकते है और शत्र, भी, इससे सात्विक भोजन भी किया जाता है और अभक्ष्य एव अग्राह्य पदार्थो का आहार भी किया जाता है। सदोष-निर्दोष, कल्पनीय-अकल्पनीय आहार भी इसी से होता है। अनुकूल रसास्वादन करने पर प्रशसक बनना और प्रतिकूल रसास्वादन पर गाली देना, ये प्रक्रियाएं राग-द्वेष पूर्वक होती है । अत: वस्तु का स्वभाव जानकर उस पर राग-द्वेष न करना, इसी को रसनेन्द्रिय का निग्रह कहा जाता है । धर्म-विरुद्ध भाषा न बोलना भी जिह्वेन्द्रिय-निग्रह का एक रूप है।
५. स्पर्शनेन्द्रिय-निग्रह-जिस इन्द्रिय के द्वारा ११८]
[षष्ठ प्रकाश