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सिद्ध होती है। रात्रि-भोजन अंधा होता है, अतः उस में अनेकों दोष होने की सम्भावना बनी रहती है, जैसे कि रात को भिक्षा लेने के लिए घरों में जाने से पहला महाव्रत क्षतिग्रस्त हो जाता है। रात को शर्म न रहने से चौया महाव्रत भी सुरक्षित नहीं रह सकता, रात्रि भोजन करने से जीवजन्तु दृष्टिगत नही होते, चिकनाई के कारण - कीड़ी प्रादि विर्षले जन्तुओं के खाने से स्मरण-शक्ति नष्ट हो जाती है । यदि भोजन में बाल हो तो वह स्वर-भंग कर देता है, जूलीख आदि भोजन में हों तो जलोदर रोग होता है, भोजन में मक्खी का कलेवर हो तो उल्टी आ जाती है । इत्यादि अनेक अनिष्ट हो सकते हैं रात्रि-भोजन से। दिन में भी इन अनिष्ट कारणों से बचाव तभी हो सकता है,जबकि विवेक का प्रकाश साथ मिला हो। सचाई यह है कि दिन में भी अन्धकार में बैठ कर आहार नहीं करना चाहिए। रात्रि को भोजन-पानी आदि रखने से अपरिग्रह व्रत भी खडित हो जाता है । जिन वस और स्थावर जीवों की रक्षा दिन में भी बड़ी सावधानी से हो सकती है, भला उनकी रक्षा रात को कैसे हो सकेगी ? अतः रात्रि को न विहार करना, न भिक्षा के लिए जाना और बिना पडिलेहे उपाश्रय से बाहर भी नहीं जाना चाहिये । रात्रि-भोजन से इन सब व्रतों का परित्याग स्वतः ही हो जाता है। रात को आहार का सेवनः न करने से आधी आयु तप में बीत जाती है ।
रात्रि-भोजन न स्वयं मन-वाणी और काय से करना; नमस्कार मन्त्र]
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