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(ङ) शुभ योग को प्रात्म-लक्ष्य की ओर लगाना समा
धारणता है, अथवा अष्टांग योग में धारणा भी एक अंग है, उसी धारणा-प्रक्रिया को दूसरे शब्दों
में समाधारणता भी कहते हैं। २६. वेदनाति सहनता- सर्दी, गर्मी, भूख-प्यास, रोगव्रण आदि प्रतिकूल परीषह पा जाने पर उन्हें समभाव से सहन करना, यह गुण भी साधुता की कसौटी है ।
२७. मारणान्तिकातिसहन ता-प्राण-घातक उपसर्गों के आने पर या मृत्यु के निकट पाने पर भी सहनशीलता का साथ न छोड़ना।
इन सत्ताईस गुणों में साधु के शेष सभी गुणों का अंतर्भाव हो जाता है। साधु और उसके पर्यायवाची शब्द
साधु, भिक्षु, संयमी, विरत, संयत, मुनि, श्रमण निर्ग्रन्थ, तपोधन, ऋषि. अनगार, संत ये सब साधु के पर्याय वाची शब्द हैं । ये नाम निरर्थक नहीं सार्थक हैं। इन शब्दों का अभिप्राय निम्न लिखित है
१. साधु-जो धर्म की साधना करता है, अथवा जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र के द्वारा प्रात्मबल की या परमात्मतत्त्व की आराधना करता है, वह साधु है। नमस्कार मन्त्र]
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