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को मुह में इधर-उधर न फिराता हुप्रा सीधा गले में उतारता है, उसके स्वाद का अनुभव नहीं करता।
५. जैसे सर्प केंचुली छोड़कर तुरन्त चल पड़ता है, फिर छोड़ी हुई कांचली की अोर नहीं देखता, वैसे ही साधु भी सुख-समृद्धि एवं सांसारिक सुखों को छोड़कर पुन: उन्हें पाने के लिए लेश मात्र की भी कामना नहीं करता।।
६. जैसे सर्प कंकर प्रादि कटकाकीर्ण मार्गों से बचकर सावधानी से चलता है, वैसे ही साधु भी जीवहिंसा आदि पापों से बचकर यतना पूर्वक चलता है।
७. जैसे सभी लोग सर्प से डरते हैं वैसे ही तेजोलेश्या प्रादि लब्धियों से सम्पन्न साधु से मनुष्य, देव और अन्य प्राणी भी डरते हैं। २. गिरि
__ साधु पर्वत के समान होता है-सदा स्थिर रहने वाले पर्वत भी अनेक प्रकार की विशेषताओं को लिए हुए होते हैं.। वे विशेषताएं सात है, उन से मिलती-जुलती विशेषताएं साधु में भी होती हैं । जैसे कि
१. जैसे पर्वत में नानाविध जड़ी-बूटियां एवं औषधियां होती हैं, वैसे ही साधु भी अक्षीण-माहनसी आदि अनेक लब्धियों के धारक हुमा करते हैं।
२. भयंकर तूफान पाने पर भी जैसे पर्वत अविचल १४८]
[षष्ठ प्रकाश