Book Title: Namaskar Mantra
Author(s): Fulchandra Shraman
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 158
________________ चेतनता मानने के लिए बाध्य कर दिया, उन्होंने अपने वैज्ञानिक साधनों द्वारा यह प्रत्यक्ष करा दिया कि वनस्पति में क्रोध हर्ष, विषाद, हास्य, राग, काम प्रादि भाव मनुष्य की तरह ही पाए जाते हैं। वनस्पतियां प्रशंसा करने से प्रसन्न और गाली, निन्दा करने से क्रोध करती हुई दिखाई देती हैं। छोटे-बड़े सभी पौधे वृद्धि पाते हैं, ये सभी लक्षण सचेतनता के हैं। अत: साधु वनस्पति का खाना-पीना तो दूर रहा वनस्पति को छूते भी नहीं हैं, न उन पर चलते हैं, न खड़े होते हैं और न लेटते हैं। जो भोजन गृहस्थ के घर में पकता है, उसी मे से वे निर्दोष आहार-पानी लेते हैं। साधु मन-वाणी और काय से वनस्पति की हिंसा न स्वय करते हैं, न दूसरे से कराते है और वनस्पति की हिंसा करने वाले की अनुमोदना भी नहीं करते है। यह भेद-भाव-मुक्त असीम करुणा ही तो साधना का शृगार है । पृथिवी, अप, तेज, बायु और वनस्पति इन कायों की संज्ञा स्थावर है । इन जीवो के एक स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है। २४. त्रसकाय-जिन जीवों की स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियां हों, उन्हें द्वीन्द्रिय कहते है। जिनकी स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रिगं हैं, वे जन्तु वीन्दिय कहे जाते हैं । जिनकी स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियां हैं; वे चतुरिन्द्रिय जीव माने जाते हैं । जिनकी सभी १३४] [षष्ठ प्रकाश

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