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शस्त्र है, इससे सभी भयभीत होते हैं। इसके सुलगाने
और बुझाने में साधु का कोई दखल नही है । अपने किसी भी काम के लिए साधु अग्नि का उपयोग नहीं करते । न दीपक जगाते हैं, न भोजन पकाते हैं, और न पानी गर्म करते हैं, इतना ही नही सुलफा, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि सभी नशीले धूम्रपान उससे छूट जाते हैं । मन-वाणी और काय से साधु तेजस्काय की हिंसा न स्वयं करते हैं, न दूसरों से हिंसा करते हैं और हिंसा करने वाले की अनुमोदना भी नहीं करते हैं। संघट्टे का प्राहार-पानी भी वे नहीं ग्रहण करते । सर्दी के दिनो में वे आग को सेकते भी नहीं हैं।
२२. वायुकाय-द्वीप की हवा, समुद्री हवा, प्रांधी तूफान, बावरोला, झंझावात, घनवात, तनुवात, इत्यादि रूपों में अस्तित्व रखनेवाले वायुकायिक भी जीव हैं । यह सत्य है संसार के सभी प्राणी वायु के आश्रित हैं। अनगार अपनी सुख-सुविधा के लिए हाथ से, मुह से या बाह्य किसी साधन से हवा नहीं करते। भले ही कितनी ही गर्मी क्यों न पड़ती हो, वे वायुकाय की विराधना न स्वयं करते हैं, न दूसरों से वायुकाय की हिंसा कराते हैं । वे.वायुकाय की हिंसा करनेवाले की अनुमोदना भी नहीं करते।
२३. वनस्पतिकाय-बीज, कंद, मूल, पत्न, फूल, फल आदि सब वनस्पतिकाय हैं। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जगदीश चन्द्र वसु ने सारे वैज्ञानिक संसार को वनस्पति में ममस्कार मन्त्र]
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