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जहां ममत्व नहीं है वहां इच्छा एवं संग्रह भी नहीं रह जाते हैं । ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र के जो निकटतम घातक उपकरण हैं, वे सब परिग्रह की छाया में ही पनप सकते हैं । जहां मूर्खा है वहां निश्चय ही परिग्रह है। ___ कनक और कामिनी ये दो परिग्रह के मुख्य अङ्ग हैं । शेष अङ्ग गौण हैं । विश्व भर में जितने भी पदार्थ है अपने माप में वे स्वयं परिग्रह नहीं है, उन्हें जब हम ममत्व का प्राधार बनाते है, तब वे परिग्रह का रूप धारण कर लेते है। जिस धरती और आकाश पर जिस व्यक्ति ने अधिकार जमाया हुआ है उसके उस अधिकार-क्षेत्र में सैकडों, हजारों तरह की वस्तुएं हैं, वे सब मानव-मन की ममता पाकर परिग्रह बन जाती हैं।
सचाई यह है कि ज़र, जोरू, जमीन, ये जहां लड़ाईझगड़े के मूल कारण है, वहां ममत्व के भी यही कारण है। उपजाऊ जमीन, सोना, चांदी, धन-धान्य, द्विपद, चतुष्पद, खाने-पीने, सोने-बैठने, आदि के काम में आने वाले धातु के बने हुए पदार्थ, भौतिक सुख-सामग्री के सभी पदार्थ उस समय परिग्रह में सम्मिलित हो जाते हैं, जब वे मानवीय ममता का संपर्क प्राप्त कर लेते हैं।
परिग्रह आत्त एव रौद्र ध्यान का मुख्य अंग है । मन, वाणी और काया से परिग्रह न स्वयं रखना न दूसरे से रखाना और परिग्रह रखने वाले का मन, वाणी एवं काया ११६]]
[षष्ठ प्रकाश