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धातक है। जो गुदड़ी में लाल बनके रहता है, उसी का ब्रह्मचर्य भगवद् पदवी को प्राप्त कर सकता है।
दसवीं गुप्ति-संसारी लोग प्रायः शृंगार-प्रिय होते हैं और शृगार-प्रिय व्यक्ति की प्रत्येक चेष्टा कामोत्तेजक होती है, अतः इन्द्रियों के विषय में सदैव अनासक्त रहकर उनका उपयोग केवल इन्द्रियों की पुष्टि के लिए नहीं, अपितु ब्रह्मचर्य की पुष्टि के लिए किया जाना चाहिये।
___ इन दस गुप्तियों से सदाचार की रक्षा हो सकती है, इनमें यदि एक भी गुप्ति उपेक्षित हो जाती है तो वह ब्रह्मचर्य को भी असुरक्षित कर देती है ।
पुरुष के लिए स्त्री विजातीय है और स्त्री के लिए पुरुष विजातीय है । सजातीय के साथ हो या विजातीय के साथ सब तरह के मैथुन का जीवन भर के लिए परित्याग करना, किसी भी प्रकार का अश्लील साहित्य न पढ़ना और न ही सुनना, यह ब्रह्मचर्य महाव्रत के लिए आवश्यक है।
सर्वत:-परिग्रह-विरमण महाव्रत-परिग्रह तीन प्रकार का होता है, इच्छा-परिग्रह, संग्रह-परिग्रह और मूर्छापरिग्रह । वस्तु को प्राप्त करने की आशा रखना इच्छा-परिग्रह है, मिलने पर उस वस्तु का संग्रह करना संग्रह-परिग्रह है। प्राप्त एवं अधिकृत वस्तु पर ममत्व रखना मूर्छा-परिग्रह है। यदि जड़ या चेतन किसी भी पदार्थ पर ममता है तो वह परिग्रह है। जहां ममत्व है वहां इच्छा और संग्रह भी हैं, नमस्कार मन्त्र
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