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अध्यात्म-शास्त्रों का अध्ययन कराने में समर्थ है वे ही उपाध्याय कहे जाते है।
_ नमो उवज्झायण-उन उपाध्यायो को नमस्कार हो, जिनका परम-कर्त्तव्य है साधु-साध्वी आदि मुमुक्षुत्रों में अध्यात्म-शास्त्रों के श्रुतज्ञान से सुविद्या का प्रचार करना । श्रुतज्ञान के प्रकाश से ही मुमुक्षु अपने धर्म-साधना के पथ पर अग्रसर हो सकता है, क्योंकि ज्ञान से ही सयम और तप के आन्तरिक स्वरूप को जाना जा सकता है और आत्मस्वरूप को भी। यदि वीतराग-वाणी का प्रकाश साधक को मिले तभी आत्मा की अनुभूति हो सकती है, क्योंकि वीतराग वाणी वस्तुतः कलिमल अपहारिणी गंगा है, इसके बिना मिथ्याज्ञान से आवत न किसी जीव का कल्याण हुआ और न होगा ही। जब उपाध्याय द्वारा दिए गए ज्ञान के प्रकाश से जिज्ञासुओं का मस्तिष्क जगमगा उठता है, तब एक दम आत्मा में रहे हुए अनन्त-अनन्त गुणों की अनुभूति स्वतः होने लग जाती है और साथ ही वीतरागता की अनुभूति भी। शिक्षा के अयोग्य शिष्य
उपाध्याय भले ही पढ़ाने में कितने ही निष्णात हों, वे भी अयोग्य को योग्य नहीं बना सकते । जो शिक्षा के योग्य है उसी को योग्य बनाया जा सकता है, किन्तु जो सर्वथा अयोग्य है, उसे योग्य नहीं बनाया जा सकता । मानव अपने आप में न योग्य है और न अयोग्य, उसे अयोग्य बनानेवाले
[पंचम प्रकाश