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"अद्रोहः सर्वभूतेषु, कर्मणा मनसा गिरा । अनुग्रहश्च दान च, सतां धर्म: सनातनः ॥"
म. भा. शान्ति, अर्थात् प्राणिमात्र पर कम से, मन से और वाणी से मंत्री एवं प्रेम करना, किसी से भी विद्रोह की भावना न रखना, सब पर दया करना, प्राणी मात्र को अभयदान देना, यही सज्जनों का अनादि धर्म है।
सावधानी से चलना, खड़े होना, बैठना, लेटना, इतना ही नहीं, बोलते समय भी सदैव सावधानी रखना, क्षुद्र जन्तुषों के द्वारा काटे जाने पर पीड़ा को सहन करते हुए उन जीवों को कष्ट न पहुंचाना किसी पर मन से भी क्रोध न करना, इस प्रकार की सभी क्रियाएं अहिंसा हैं।
२. सर्वतः-मषावाद-विरमण-महाव्रत-मषा का अर्थ है झूठ, और वाद का अर्थ है बोलना-सब तरह के असत्य भाषण का परित्याग करना, यह दूसरा महावत है । जो साधक अपने लिए वा दूसरों के लिए किसी भी स्थिति में क्रोध से, लोभ से, भय से, या हंसी से न स्वयं झूठ बोलता है, न मन, वाणी और काया से दूसरों के द्वारा असत्य भाषा बुलवाता ही है और असत्य भाषी का मन, वाणी और काया से समर्थन भी नहीं करता है, यह उसका दूसरा महाव्रत है। मौन रखना, प्रयोजन होने पर हितकर, परिमित, प्रिय एवं मधुरभाषा बोलना, ये सब उस नमस्कार मन्त्र]
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