________________
इन पाठ गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही शिक्षा का पात्र बन सकता है। ऐसे शिक्षाशील व्यक्ति को अपनी आध्यात्मिक शक्ति एव ज्ञान के द्वारा समृद्ध बनाने मे उपाध्याय सफल हो सकते है। उपाध्याय की आज्ञा मे रहने से और अपने सुकार्यों से उन्हें प्रसन्न करने से वे वहुश्रुत सुशिष्य को रत्नत्रय के वैभव से पूर्णतया समृद्ध बना देते हैं, जिससे सदा के लिए सुगति उसके हस्तगत हो जाती है और दु.ख तथा दुर्गति के जो मूल कारण है उन पाठ कर्मो से वे सर्वथा मुक्त हो जाते हैं । विनीत शिष्य सर्वप्रथम उपाध्याय को यथाविधि वन्दनानमस्कार करता है, क्योकि विनय-भक्ति से विद्या बढ़ती है
और फलवती भी होती है। उपाध्याय की अध्यापन-विधि
शिष्य को पढ़ाते समय सब से पहले उपाध्याय जी महारग्ज जिस सूत्र का अध्यापन करना प्रारम्भ करते है, उसके नाम की व्याख्या करते है । उसके अनन्तर उसमें जो अध्ययन, शतक, स्कन्ध, स्थान, वर्ग, प्रतिपत्ति, वक्षस्कार, दशा, उद्देशक, प्राभृत, वस्तु आदि अधिकार प्रारम्भ होने वाला है, उसकी व्याख्या करना भी वे अपना कर्त्तव्य समझते हैं। उस के अनन्तर वे अनुगम की दृष्टि से अध्यापन करते है, उसका क्रम निम्नलिखित है
१. सहिता, २. पद, ३.पदार्थ, ४. पद-विग्रह, चालना, ६. प्रत्यवस्थान, या प्रसिद्धि के माध्यम से अध्ययन नमस्कार मन्त्र]