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कोई प्रपूर्वकरण गुणस्थान में है, कोई नौवें गुणस्थान में है, कोई दसवें गुणस्थान में है, कोई ग्यारहवे गुणस्थान में है, कोई बारहवें गुणस्थान में है, कोई मतिज्ञानी, कोई ध्रुतज्ञानी, कोई अवधिज्ञानी है, कोई मन:पर्यवज्ञानी है, कोई 'गंच समिति, तीन गुप्ति रूप आठ प्रवचन माताओं का उपासक ज्ञानी है कोई ग्यारह अंग शास्त्रों का वेत्ता है, कोई एक पूर्व से लेकर चौदह पूर्वो का ज्ञानी है, कोई स्वयं बुद्ध है, कोई प्रत्येक बुद्ध है, कोई बुद्ध-बोधित है, कोई मूल गुणों का पाराधक है. कोई उत्तरगुणों का आराधक है, कोई नवदीक्षित है कोई शिप्य है, कोई श्रमणी है, कोई गणी है, कोई प्रवर्तक है, कोई गणावच्छेदक है, कोई प्रतिनी है, कोई अभिग्रहधारी है, कोई बहुश्र त है, कोई जघन्य आराधक है, कोई मध्यम प्राराधक और कोई उत्कृष्ट पाराधक है । इस प्रकार के जितने भी सयम-साधना मे तल्लीन साधु हैं, यहां सर्व शब्द से उन सबका ग्रहण हो जाता है । नमस्कार करने वाला कहता है उन सभी साधुओ को मैं नमस्कार करता हूं।
सव्व साहूणं- इस पद का संस्कृत रूप सार्व साधुओं को भी होता है । इसका भाव है - जो नस और स्थावर, सूक्ष्म थोर स्थूल, शन्नु और मित्र, सज्जन और दुर्जन, सुखी और दु.खी, धर्मात्मा और पापी, राजा और रंक, इन सब प्राणियो के पूर्ण हितैषी है, उन्हे 'सावं साधु' कहा जाता है । मन्त्रोच्चारण करने वाला कहता है,उन को मेरा नमस्कार हो ।
नमस्कार मन्त्र]
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