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हाथी चारों और हथिनियों के समूह से घिरा हुआ शोभा को प्राप्त होता है। उस प्रधान हाथी की तरह बहुश्रु त भी जब ज्ञान और क्रिया दोनों से सम्पन्न हो जाता है, तब वह मायिक पदार्थो एवं अधम जीवों के कुविचारों से कभी भी प्रभावित नहीं होता। वह अपनी ज्ञानधारा रूपी हस्तिनियों से घिरा रहता है । अत: बहुश्रु त को हाथी की उपमा से उपमित किया गया है।
५. वृषभ-रत्न की उपमा-तीखे सींगों वाला, उन्नत स्कन्ध वाला, गोब्रज का स्वामी महावृषभ अपने यूथ मे रहा हुअा जैसे शोभायमान होता है उसी तरह बहुश्रु न भी निश्चय नय और व्यवहार नय का, तथा स्वसमय और परसमय का वेत्ता एव चारित्न-धर्म से समुन्नत होकर जिन शासन के भार को उद्वहन करने में समर्थ बनकर अपने चतुर्विध श्रीसघ मे सुशोभित होता है। बहुश्रत और वृषभ दोनो में समान धर्म होने से बहुश्र त को वृषभरत्न से उपमित किया गया है।
६. सिह की उपमा- जैसे तीखी दाढ़ों वाला वह सिंह जिसको पराजित करना अति कठिन है दन्य प्राणियो मे अजेय एव प्रधान होता है, वैसे ही सिंह के समान बहुश्र त होता है। वह प्रमाण, नय, निक्षेप, सप्तभङ्गी अनुयोग, अनेकांतवाद आदि ज्ञान के साधनो से असत्यांश का विलय कर देता है । वह कभी भी अन्ययूथिक विद्वानों नमस्कार मन्त्र]
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