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से पराजित नही होता, बल्कि बहुश्रुत के तप:-तेज से अन्य यूथिक स्क्य ही तितर-बितर हो जाते हैं, अत. बहुश्रुत की सिह ते दी गई उपमा भी सर्वथा समुचित ही है।
७ वासुदेव की उपमा-राजनीति के क्षेत्र में वासुदेव एक महत्त्वपूर्ण पद है । वह पांचजन्य शख, सुदर्शनचक्र और कौमोदकी गदा, इनसे युक्त सदैव अप्रतिहत अखण्ड बलशाती होता हुनः शोभित होता है । वासुदेव की तरह बहुशु त भी दुर्जेय होता है । वह अहिंसारूप पाच-जन्य शंख के नाद से, सयमरूप सूदर्शन-चक्र से और तपरूप कौमोदकी गदा से मोह-कर्म रूप शो को नष्ट-भ्रष्ट कर देता है, अत: वासुदेव की उपमा से बहुश्रुत को उपमित किया गया है।
८. चक्रवर्ती की उपमा-राजनीति के क्षेत्र मे चत्र बर्तीपद सर्वोपरि माना जाता है । वह छ खण्ड का अधिनायक होता है, उसके आधीन चौदह रत्न और नवनिधान होते है, उसकी जय-विजय चारों दिशाओं में होती है । वह गज, अश्व, रथ और पदाति सेना से अथवा नभसेना स्थल-सेना और जल-सेना से समस्त शत्र यों को पराजित करता है । वह वैक्रियादि नाना लब्धियों से महद्धिक और बत्तीस हज़ार राजानो में सर्व श्रेष्ठ राजा माना जाता है । वैसे ही बहुश्रु त भी दानशील, तप और भावरूप चतुरगिणी सेना से रागद्वेष आदि अन्तरंग
[पचम प्रकाश