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जाया करते हैं, अत: गम्भीर एवं प्रशान्त बहुश्रुत में सभी गुण होते हैं। ____ कोई भी प्रतिवादी उन्हें जीतने में समर्थ नहीं हो सकता और न ही कोई उनका तिरस्कार ही कर सकता है । इन सब को लक्ष्य मे रखकर अंग, उपांग, मूल, छेद एवं पूर्वो के वेत्ता, जीवों के रक्षक बहुश्रु त को स्वयभूरमण समुद्र की उपमा से उपमित किया गया है।
इस प्रकार सोलह उपमाओं से शास्त्रकारो ने बहुश्र त उपाध्याय के स्वरूप पर विशेष प्रकाश डाला है।
बहुश्रु त एक नहीं अनेक होते हैं । हो सकता है, एक ही बहुश्रु त में ये समस्त उपमाएं घटित न हो पाएं, परन्तु बहुश्रु त मुनिराजों में ऊपर वर्णित प्राय: उपमान-गण प्राप्त हो ही जाते हैं, इन गुणों के होने पर ही तो मुनिराज सच्चे अर्थों में बहुश्रु त होते है । ये सभी उपमाएं एक बहुश्रुत में नहीं पाई जा सकतीं । जिस में जैसी-जैसी विशेषताएं होती हैं, उसके लिए वैसी-वैसी उपमाएं शास्त्रकारों ने दी हैं । इनमें से कुछ उपमाएं प्राचार्यों में भी घटती हैं, कुछ गुण संघ में रहनेवाले बहुश्रुत साधुनों में भी पाए जाते हैं और उपाध्यायों में तो प्रायः सभी उपर्युक्त गुण होते ही हैं ।
संयम-सहित श्रुतज्ञान अमृततुल्य है, वह शास्त्रों द्वारा सत्संग द्वारा तथा महापुरुषों की अपार कृपा से प्राप्त होता है । अतः मुमुक्षु साधकों को चाहिए कि ज्ञान-प्राप्ति के लिए ९६]
[पंचम प्रकाश