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प्राणियों को सूर्य भगा देता है । बहुश्रु त के समक्ष भी कोई प्रतिवादी प्रांख उठाकर नहीं देख सकता, अत: बहुश्र त के लिये सूर्य की उपमा बिल्कुल ठीक घटती है।
११. चन्द्रमा की उपमा-सौम्य एवं प्रकाशमान पदार्थो मे सर्वोत्तम चन्द्रमा माना जाता है। वह ग्रह-नक्षत्रतारो के मध्य पूर्णमासी की रात को अपने आप में पूर्ण होकर सुशोभिन होता है । उसी तरह बहुश्रु त भी चतुर्विध श्रीसंघ मे धर्म की सोलह कलाओं से पूर्ण होकर चन्द्रमा की तरह सुशोभित होता है। पूर्णमासी के चन्द्रमा में प्रति-पूर्णता, प्रसन्नता और शीतलता आदि जितनी भी विशेषताएं होती हैं, वे सब बहुश्रुत मे भी पाई जाती हैं । १२. धान्यपूर्ण कोष्ठागार की उपमा
मानव का जीवन विशेषत: अन्न पर निर्भर है । ग्रामवासी धनाढय लोग प्रायः धान्यों का संग्रह खत्तियों या कोठों में किया करते हैं ताकि चूहो, ढोरों, सुरसरी प्रादि कीटो के उपद्रवो से धान्यो को सुरक्षित रखा जा सके । उसी तरह बहुश्रुत-ज्ञानी भी शुद्ध अन्त.करण एव मस्तिष्क में श्रुतज्ञान को सुरक्षित रखते है, उसे प्रमाद आदि के उपद्रवो से बचाए रखते हैं।
सग्रह की हुई धान्य-राशि प्राणों का आधार होने से जनता की भलाई के लिए सुरक्षित रखी जाती है और समय पाने ९२]
[पचम प्रकाश