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णमो उवज्झायाणं
पंचम प्रकाश
उपाध्याय की साधकों को उतनी ही आवश्यकता है जितनी प्राचार्य की होती है। उपाध्याय का अर्थ है वे आगम-निष्णात मुनि-वृन्द जिनके पास आकर अध्यात्म-विद्या का अध्ययन किया जाए। जिन-वाणी को स्वयं पढ़ना और दूसरों को पढ़ाना ये कर्त्तव्य उपाध्याय के हैं ।
ब्राह्मणों में उपाध्याय का कुल-क्रम देखा या सुना जाता है और कुछ विश्व-विद्यालयों की ओर से भी स्नातकों को उपाध्याय पद की उपाधि दी जाती है। यहां उन उपाध्यायों से अभिप्राय नही है, जो कर्तव्य का पालन नहीं करते या केवल उपाध्याय पद को पाकर अभिमान की ही पोषणा कर रहे हैं, वे भी इस पद में गभित नहीं होते हैं। जिनके जीवन में अध्ययन और अध्यापन की ओर विशेष अभिरुचि, है, जो मनोवैज्ञानिक रीति से, शान्ति से, कोमल शब्दों से
नमस्कार मन्त्र]
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