________________
के बिना जिस का भाव स्पष्ट न हो, उसे वृत्ति, नियुक्ति एव भाष्य आदि से जागत किया जाता है। ज्ञानी के द्वारा कहे गए सुवचनों को सूक्त कहा जाता है। मूल सूत्र शिष्यों को पढ़ाना, शुद्ध उच्चारण सिखाना, व्याकरण रीति से शब्दो की व्युत्पत्ति सहित सूत्र पढ़ाना 'सूत्र-वाचना'
(ख) अर्थ-वाचना-इस प्रकार प्रर्थ को पढ़ाना, जिस से अर्थ का ज्ञान हो, सूत्रकर्ता के अभिप्राय को जानना, इस में क्या तथ्य छिपा हुआ है ? उस तथ्य को समझाना । नय, प्रमाण, निक्षेप, लक्षण, अनेकान्तवाद यादि विधियों से अर्थ-ज्ञान सिखाना अर्थवाचना है। विधिपूर्वक अध्ययन कराने पर ही अर्थ स्पष्ट होता है।
(ग) हित-वाचना-शिष्य की बुद्धि, योग्यता, एवं अवस्था को देखकर जो उसके हित में अधिक उपयुक्त हो, उसे ही पढ़ाना हित-वाचना है।
(ध) नि:शेष-वाचना-किसी भी शास्त्र को आद्योपान्त पढ़ाना, अथवा संहिता, पदार्थ, पद-विग्रह, शंका और समाधान इस क्रम से पढ़ाना, अथवा विघ्नसमूह के उपस्थित होने पर भी प्रारम्भ किए शास्त्र या विषय को पूर्ण करना निःशेष वाचना है। क्रम से शिष्यों को पढ़ाना 'श्रुतवाचना-प्रतिपत्ति' है।
श्रद्धा एवं विनय के साथ सूत्रों का अर्थ सहित अध्ययन करने से ही श्र तज्ञान की उपलब्धि होती है। ७२]]
[चतुर्थ प्रकाश