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रह सकता है । प्रत्येक साधक की प्रकृति भिन्न होती है । अत: उन्हें कोई बद्धिमान ही सुशिक्षित कर सकता है ।
४. बहुसुय पुरिसजाए-बुद्धिमान् तो अनपढ भी हो सकता है, अत: प्राचार्य का विद्वान् होने के साथ-साथ बहुश्रुत होना भी जरूरी है । जिसकी विद्वत्ता बहुमुखी हो, स्व-दर्शन और परदर्शन का वेत्ता हो, वही बहुश्रुत गण की सार-सम्भाल कर सकता है।
५. सत्तिम-यदि प्राचार्य मानसिक, वाचिक एवं शारीरिक शक्ति से सम्पन्न हो, मन्त्र-शक्ति, विद्या-शक्ति एवं दिव्य-शक्ति इत्यादि शक्तियों पर अधिकार रखता हो, तभी वह सघ की या गण की रक्षा कर सकता है। आपत्ति-काल मे अपनी और अपने गण की रक्षा करनेवाला ही आचार्य बन सकता है।
६. अप्पाहिगरणे-जो न अपने पक्ष से कलह, झगड़ा, लड़ाई करता है और न दूसरे मतावलम्बियो से कलह करता है, जो स्वय भी शात रहता है और दूसरो को भी शान्ति प्रदान करता है, किसी से तकरार नहीं करता, वही संघ की रक्षा करने में समर्थ हो सकता है। पाठ गणी-संपदा
ज्ञान आदि गुणों के समूह को गण कहा जाता है, अथवा एक गुरु के शिष्य परिवार को कुल और अनेक कुलों के समूह को गण कहते है। ऐसे गण की कुशल व्यवस्था नमस्कार मन्त्र]