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में सर्व-श्रेष्ठ, ४. मधुरभाषी, ५. गम्भीर, ६. धैर्यवान् ७. उपदेश देने मे कुशल, ८. अविस्मृति-धारणावान ९. सौम्य, १०. सग्र हशील, ११. अचपल, १२. प्रशान्त, १३. विकथाविमुख, १४. अप्रमत्त, दशविध यतिधर्म से युक्त, अनित्य आदि बारह भावनाओं से सम्पन्न इस तरह भी आचार्य के छत्तीस गुण कहे जाते है । छठ प्रकार के छत्तीस गुण
१. देशयुत : आय देश मे जन्म लेने वाले।
कुलयुत : कुलीन, कुलीन व्यक्ति ही अनुष्ठानों का निर्वाह कर सकता है।
३. जाति युत : उच्च जाति वाला व्यक्ति ही विनयलज्जादि गुणो वाला होता है।
४. रूप-सम्पन्न : रूपवान् व्यक्ति प्राय: गुणवान होते हैं। जनता प्रायः ऐसे व्यक्तियों के गुणों के प्रति अधिक आकृष्ट होती है।
५. सहननयुत : विशिष्ट शक्ति सम्पन्न व्याख्यानादि देते हुए खेद का अनुभव न करनेवाला ।
६. धृतियुत : मानसिक स्थिरतावाला एवं धैर्यशाली।
७. अनाशसी : निस्पृह एव श्रोताओं से वस्त्रादि पाने की इच्छा न रखनेवाला।
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चतुर्थ प्रकाश