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उत्पत्ति स्वतः हो जाती है और पर-पर्याय विल्कुल समाप्त हो जाती है। इनका विवरण इस प्रकार है, जैसे कि
सिद्ध भगवान न लम्बे आकार के है और न छोटे है, न गोल है, न त्रिकोण है, न चौकोण और न मण्डलाकार है । बे न काले हैं, न गोरे हैं, न लाल है, न सफेद है, न नीले है। वे न सुगन्धित हैं, न दुर्गन्धित है । वे न तीखे है न कड़वे है । न वे कसले है, न खट्टे है और न मीठे है । वे न कठोर स्पर्श वाले है, न सुकोमल है, न हल्के है, न भारी है, न ठण्डे हैं, न गर्म हैं, न चिकने है और न रूग्वे है। वे छः कायों में से कोई भी कायिक नहीं । अथवा उनके पाच शरीगें में से कोई काय नहीं है । वे राग द्वेष मोह के सग से तथा कर्म-सग से सर्वथा मुक्त हैं ! वे किसी भी समय जन्म नही लेते। वे न स्त्री है, न पुरुष हैं और न नपुंसक हैं ।
वे सर्ववेत्ता है, सर्वदर्शी है, उनके ज्ञान और सुख के लिए कोई उपमा नहीं दी जा सकती, क्योकि विश्व में ऐसी कोई वस्तु ही नहीं है जिसके साथ उनके ज्ञान और सुख की उपमा घटित हो सके। वे अरूपी है। उनका स्वरूप शब्दातीत है।
___ इस वर्शन से यह स्वतः सिद्ध है कि सिद्धों में पौद्गलिक गुणों का सर्वथा अभाव है । सिद्धों की आशातना न करना, उन्हें वन्दन नमस्कार करना, मन में श्रद्धा प्रीति रखन्ग, वाणी से उनका गुणगान करना विनय-तप है। विनय धर्म का
[ तृतीय प्रकाश