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"नमो सिद्धाणं" कह कर सिद्धों को नमस्कार करते है तब वे चाहे अनन्तर-सिद्ध हों या परम्पर-सिद्ध हों, तब हमारे द्वारा बिना किसी भेद-भाव के सबको नमस्कार हो जाता है। सिद्धों के पाठ गुण
कर्मों के प्रावरण से आत्मा की ज्ञानादि शक्तियां दबी रहती है, उस कर्मावरण के सर्वथा नष्ट हो जाने से मुक्त प्रात्मानो मे निम्नलिखित आठ गुण प्रकट हो जाते है
१: केवल ज्ञान-यह गुण ज्ञानावरणीय कर्म के पूर्णतया क्षय होने पर ही उत्पन्न होता है। इस गुण के उत्पन्न होने से प्रात्मा लोक और अलोक को भली-भान्ति जानने लग जाता है। वह सूक्ष्म-स्थूल, अन्दर-बाहर, दूरसमीप, मूर्त-अमूर्त, जीवो की गति और प्रागति प्रादि अनेक रहस्यपूर्ण वृत्तों को हस्तामलक की भांति प्रत्यक्ष देखने लगता है, उसके लिये कोई वस्तु परोक्ष नहीं रह जाती । सिद्धों मे यह गुण सादि अनन्त रहनेवाला है। यह गुण उदित होकर अस्त नही होता है।
२. केवल-दर्शन-यह गुण दर्शनावरणीय कर्म के आत्यन्तिक क्षय से प्रकट होता है। इससे वह सभी पदार्थों को देखने लग जाता है। अखिल पदार्थों की सभी पर्यायों के सामान्य गुणों का प्रत्यक्षीकरण सिद्ध भगवान करते हैं। केवल ज्ञान से वस्तु के विशेष गुणों का और केवल दर्शन से सामान्य गुणो का प्रत्यक्ष किया जाता है। यही दोनों नमस्कार मन्त्र ]
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