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४. वचनातिशय-अरिहन्त भगवान की वाणी माधुर्य एवं प्रसाद गुणयुक्त होती है। देव, मनुष्य तिर्यञ्च सभी उनकी वाणी सुनकर कृतकृत्य हो जाते है । जो एक बार उनकी पीयूषवर्षिणी वाणी का श्रवण कर लेता है, उसके जीवन से मनोमालिन्य, वैर-विरोध एक दम निकल जाते हैं और वह उज्ज्वल बन जाता है।
अरिहन्त भगवान वस्तुस्वरूप को समझाने के लिये अनेकान्तवाद, निक्षेप, नय, प्रमाण सप्त-भंगी लक्षण का निरूपण करते हैं । पचास्तिकाय, षड्द्रव्य, नवतत्त्व सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र इन सब का निरूपण भेद-उपभेद सहित वाणी द्वारा प्रकाशित करते हैं । त्याज्य क्या-क्या है ? ग्राह्य क्या क्या है ? और ज्ञातव्य क्या-क्या है ? इनका विश्लेषण-सश्लेषण भी जनता के सामने दिव्य शैली से करते है। यही है उनका वचनातिशय ।
पूर्वोक्त आठ प्रकार के गुणों के साथ इन चार अतिशयों को सम्मिलित करके अरिहन्त भगवान में बारह गुण होते है ।
अरिहन्त भगवान् सब के मार्गदर्शक होते हैं, अत: उन्हे नमस्कार किया जाता है। यद्यपि पांच महाविदेहों में एक सौ साठ विजय है, अलग-अलग विजयों मे, कम से कम बीस तीर्थङ्कर तो रहते ही हैं, तथापि हमारे समक्ष जो भूलोक है, इसमें उनका प्रवचन ही भव्य प्राणियों को प्रकाश-स्तम्भ की तरह सन्मार्ग दिखा रहा है।
प्राचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीन पद अरिहन्त नमस्कार मन्त्र ]
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