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५. अरहा-जिनसे द्रव्य-पर्याय या गुणपर्याय आदि कोई भी बात छिपी नहीं रह गई अथवा जो नरेन्द्रों के तो क्या ? देवेन्द्रों के भी पूज्य बन गए हैं, उन्हें अरहा या अरिहन्त कहा जाता है।
६. जिणे-राग-द्वेष के विजेता होने से उन्हे जिन भी कहा जाता है।
७. केवली-केवलज्ञान, क्षायिक सम्यग्दर्शन और यथाख्यात-चारित्र इन तीन गुणों से सम्पन्न प्रात्मा को केवली कहा जाता है। यह विशेष गुण सयोगी और अयोगी दोनों गुण-स्थानों में रहनेवाले जीवों में पाया जाता है ।
८. अपरिस्सावी-पूर्णतया अबधक अवस्था को प्राप्त हुए जीव अपरिश्रावी कहे जाते है। शुक्ल ध्यान के चौथे चरण में पहुचे हुए सभी जीव अबधक ही होते है । यह अवस्था चौदहवें गुणस्थान मे होती है ।
पूर्वोक्त पाठ गुण अरिहन्त भगवन्तों के हैं सिद्धों के नहीं। अथवा १. जिणाणं, २. जावयाणं, ३. तिण्णाणं, ४. तारयाण, ५. बुद्धाणं, ६. बोहयाण, ७. मुत्ताण, ८. मोयणाणं
अर्थात् - स्वयं राग-द्वेष के जीतने वाले, दूसरों को जिताने वाले, स्वयं संसार-सागर से जो तर गए हैं और दूसरों को तारने वाले हैं, स्वयं बोध पाए हुए है, दूसरों को नमस्कार मन्त्र ]
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