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एक बार उदित होने पर सदा-सर्वदा रहे, जिसकी धारा कभी खण्डित न हो, वह शाश्वत आनन्द माना जाता है । उस शाश्वत प्रानन्द को पाने के लिये ही सिद्धों को नमस्कार किया जाता है।
यद्यपि सिद्ध शब्द के अनेक अर्थ हैं- जैसे कि निपुण, सफल, प्रमाणित, कृतकार्य, लक्ष्य पर पहुंचा हा, जो योग की विभूतियां प्राप्त कर चुका हो, जिसे अलौकिक सिद्धियां प्राप्त हो चुकी हों, जिसकी आध्यात्मिक साधना पूर्ण हो चुकी हो इत्यादि । इन्हीं अर्थों को लेकर विशेषावश्यक भाष्यकार जिनभद्र गणी क्षमा-श्रमण ने सिद्ध शब्द का प्रयोग निम्न रूपों में इस प्रकार किया है
१. कर्मसिद्ध-कृषि, भवन-निर्माण प्रादि कार्यों में निपुण ।
२. शिल्प-सिद्ध-सीना-पिरोना, कढ़ाई प्रादि शिल्प उद्योगों में चतुर ।
३. विद्या-सिद्ध-जिसकी विद्या सफल हो गई है।
४. मन्त्रसिद्ध-जिसका साधा हुमा मन्त्र कार्य करने मे सफल हो चुका है।
६. योग-सिद्ध-अनेक वस्तुओं के मेल से चमत्कार दिखाने वाला कुछ विशिष्ट तिथियों, वारों, नक्षत्रों आदि का किसी निश्चित नियमानुसार एक साथ पढ़ने, वशीकरण
[ तृतीय प्रकाश