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मही पाती, अत: उसे अव्याबाध भी कहते हैं ।
७. जिस गति को प्राप्त कर फिर कभी भी संसारयात्रा नही करनी पड़ती, उस गति को अपुनरावृत्ति भी कहते है। इन सात विशेषणों से युक्त सिद्ध-गति को प्राप्त जीव ही सिद्ध कहलाते है ।
नमो सिद्धाण-नमस्कार हो सिद्धों को। यहा पर नमः के योग में षष्ठी विभक्ति का बहुवचन प्रयुक्त है, क्योंकि प्राकृत भाषा मे चतुर्थी का बहुवचन नहीं होता। पांचों पदों में एक सा नियम है । आठ कर्मों के नष्ट हो जाने पर कृतकृत्य हुए लोकान-स्थित सिद्ध-गति को संप्राप्त सभी मुक्तात्मानों को सिद्ध कहते हैं, अथवा जो महान् आत्माए कर्ममल से सर्वथा मुक्त हो गई हैं, जन्म-मरण के चक्र से छूटकर सदा के लिये अजर-अमर, बुद्ध , अजन्मा, एवं बन्धन-रहित हो गई है, उन्हे सिद्ध-पद से सम्बोधित किया जाता है । अरिहन्त जीवन्मुक्त एव देहधारी और सिद्ध देहमुक्त होते है । भव्य-जीव सम्यक्त्व का विकास करता हुआ अरिहन्त बनता है और उसके बाद ही सिद्धत्व को प्राप्त करता है । प्रात्म-विकास की अन्तिम कोटि पर सिद्ध भगवान ही अवस्थित है । उनसे आगे और कोई आत्म-विकास की भूमिका शेष नहीं रह जाती है।
सिद्ध पद शाश्वत है, शाश्वत अवस्था को प्राप्त करने के लिए सिद्धों को नमस्कार किया जाता है । जो मानन्द नमस्कार मन्त्र]
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